गीतिका/ग़ज़ल

समंदर सूख जाना चाहता है

तपन को आजमाना चाहता है ।
समंदर सूख जाना चाहता है ।।

तमन्ना वस्ल की लेकर फिजा में।
कोई मुमकिन बहाना चाहता है ।।

जमीं की तिश्नगी को देखकर अब ।
यहाँ बादल ठिकाना चाहता है ।।

तसव्वुर में तेरे मैंने लिखी थी।
ग़ज़ल जो गुनगुनाना चाहता है ।।

मेरी चाहत मिटा दे शौक से तू ।
तुझे सारा ज़माना चाहता है ।।

मेरी फ़ुरक़त पे है बेचैन सा वो ।
मुझे जो भूल जाना चाहता है ।।

चुभा देता है ख़ंजर पीठ में जो ।
वही मरहम लगाना चाहता है ।।

अदब से दूर जाता एक झोंका ।
कोई आँचल उड़ाना चाहता है ।।

दिखा देना हमारे ज़ख्म उसको ।
वो हम पर मुस्कुराना चाहता है ।।

हवा का रुख पलट जाने से पहले ।
वो मेरा घर जलाना चाहता है ।।

अना के साथ वो हुस्नो अदा से ।
नया सिक्का चलाना चाहता है ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

*नवीन मणि त्रिपाठी

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