सुविधा सुमार
“देखो भाया! मैं ठहरा बनिया…। लेना-देना हमारा व्यापार है… मैंने आपका साल भर से बंद पड़ी स्कूटी ठीक करवा देने में मदद की… बरोबर… है न?”
“बिल्कुल ठीक कहा आपने । आप बड़ा काम करवा दिए…”
“अब हिसाब बराबर करने का है”
“ले आइये ढ़ेर सारा मिठाई… मिठाई से कर्जा थोड़ा उतर जाए…”
“अरे नहीं न । मिठाई तो अलग चीज है, वो तो पड़ोसी और अतिथि के नाते खाऊँगा ही…”
“अरे! फिर?”
“मुझे साहित्य का भूख है… अपनी आँखें इतनी खराब हो गई है कि खुद से पढ़ नहीं पाता कुछ और यहाँ दूसरे हैं नहीं जिनसे चर्चा कर सकूँ। आज विभा जी ने पढ़ कर सुनाई तो बहुत आनंद आया । अब तो आप जब तक यहाँ हैं हमारी तो रोज यहाँ ही बैठक जमेगी ।”
“मुझे भी अच्छा लगेगा आदरणीय । गुजराती होते हुए भी आपको हिन्दी साहित्य में रुचि है । आप हाइकु जानते हैं । हाइकु सुनने वाले हिन्दी में ही कम मिलते हैं ।”
“एक बात कहूँ आप बुरा नहीं मानेगीं न?”
“बिल्कुल नहीं ! बोलिये…”
“आप अभी चार पृष्ठ पढ़ कर सुनाई हैं उसमें एक शब्द खटक गया “ईमानदारी”… ईमानदारी हिन्दी शब्द तो नहीं … “अब चलता है” मत बोल दीजियेगा… ”
“लोगों को मिक्सचर पसंद आने लगा है।”