जो बढ़ती जाती है पल-पल वो तासीरे मुहब्बत है
जो बढ़ती जाती है पल-पल वो तासीरे मुहब्बत है ।
कि मिलकर खाक में पायी ये जागीरे मुहब्बत है ।
वो मिलकर भी नहीं मिलता, वो खोकर भी नहीं खोता,
लिखी किसने बड़ी बेढब ये तकदीरे मुहब्बत है ।
मेरी हस्ती, मेरे अरमां, मेरे सपने उजड़ते हैं,
मगर मिटती नहीं दिल से ये तहरीरे मुहब्बत है ।
तेरे ही रंग सब उसमें, तेरे ही ढंग सब उसमें,
तेरे अहसास से वाबस्ता तस्वीरे मुहब्बत है ।
कि इसकी कैद से ‘नीरज’ निकलना तो है नामुमकिन,
कभी तोड़े न जो टूटे वो जंजीरे मुहब्बत है ।
नीरज निश्चल