कविता

तपन

हमनें हौसलों से सीखा है
मुसीबतों से टकराना
वरना कौन नंगे पाँव
अंगारों पर बार बार चलता है।

सेक लेते हैं पाँव के फफोलो को
अपने ही सब्र की बरफ से….
दूसरा कौन मरहम लगाने का काम करता है।

आंधियां छा जाती हैं अकसर
वक्त मौसमें गर्दिश पर
इनसान की होशियारियाँ कहाँ काम करती हैं।

छूट जाते हैं कई बार पतवार उनके हाथों से भी
जिन्हें दरियायों को जीतने की महारत हासिल होती है।
कतर दिए जाते हैं पंख उन्हीं के अकसर
जिनकी ऊंचा उड़ने की फितरत होती है।

देते हैं तसीहा जो दूसरों की रूह को
उन्हें सकूनेरूह कहाँ नसीब होती हैं?

— विजेता सूरी रमण

विजेता सूरी

विजेता सूरी निवासी जम्मू, पति- श्री रमण कुमार सूरी, दो पुत्र पुष्प और चैतन्य। जन्म दिल्ली में, शिक्षा जम्मू में, एम.ए. हिन्दी, पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक उपाधि, वर्तमान में गृहिणी, रेडियो पर कार्यक्रम, समाचार पत्रों में भी लेख प्रकाशित। जे ऐंड के अकेडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज जम्मू के 'शिराज़ा' से जयपुर की 'माही संदेश' व 'सम्पर्क साहित्य संस्थान' व दिल्ली के 'प्रखर गूंज' से समय समय पर रचनाएं प्रकाशित। सृजन लेख कहानियां छंदमुक्त कविताएं। सांझा काव्य संग्रह कहानी संग्रह प्रकाशित।