कविता

रिक्तता

“रिक्तता ”

जब होती हूँ मैं अकेली
एक तन्हाई मुझे घेर लेती है
और मन विवश होता है
अंधेरी गलियों में
भटकने के लिए
खोजने के लिए जीवन का अर्थ ।
जीवन का सत्य यही है
यहाँ भीड़ में भी
हर इन्सान अकेला है ।
“रिक्तता “भरे ऐसे क्षण में
तुम्हे अपने पास पाती हूँ
हे!ईश्वर ।
तुम मुझमें नई शक्ति भर देते हो
और मैं उठ खड़ी होती हूँ
अपने कर्तव्य पथ पर
अग्रसर होने के लिए ।

ज्योत्स्ना के कलम से

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]