पर्यावरण

हमारी पृथ्वी, हमारा पर्यावरण और हमारा कर्तव्य

हमारी पृथ्वी अपने आँगन में प्रकृति और पर्यावरण नामक अपने करिंदों से करोड़ों-अरबों वर्षों के अथक लगन, परिश्रम और अद्भुत अपनी उत्कृष्ट सोच से करोड़ों किस्म के फूलों, रंगविरंगी तितलियों, भौरों, सुरीले कंठ वाली और अपने अद्वितीय रंग की छटा वाले परिंदों, हरेभरे मैदानों में मन्त्रमुग्ध करतब दिखाने वाले सैकड़ों नस्लों के जंगली मृगों, हिरनों, खरगोशों, भेड़ों, बकरियों, घोड़ों, गेंडों, हाथियों तथा जल में असंख्य रंगरूप की व विविध आकार प्रकार की मछलियाँ जो कुछ मिलीमीटर से लेकर हजारों टन तक के आकार की हैं, का समायोजन बहुत करीने से किया है, इसके साथ ही इनकी संख्या को नियन्त्रित करने हेतु एक संतुलनकारी व्यवस्था हेतु, कुछ हिंसक और अपने विचित्र चित्रकारी वाले शिकारी जानवर जैसे नभ में बाज, जल में किलर ह्वेल और थल पर चीते, तेंदुए, बाघ और सिंह भी पैदा किया है। इसके अतिरिक्त वनों में सूक्ष्मदर्शी से देखने लायक पौधे से लेकर विशालकाय वटवृक्ष और शिकोया जैसे विराट काया वाले पेड़ तक पैदा किए हैं, अतिरिक्त इस समस्त वातावरण के अपने रंगविरंगे अद्भुत सौन्दर्य के साथ अपने सुगंध से विस्मित कर देने वाले पुष्पों जैसे बेला, चंपा, हरसिंगार, चमेली, गुलाब और केसर आदि अनन्त पुुष्प और पुष्पों की घाटियाँ तक हम मानवों को सुलभ कराईं हैं, खाने के लिए असंख्य और विविध सुगंधित व रसीले फल व पौष्टिकता से भरपूर सोने जैसा दमकता गेंहूँ और सुगंधित चावल भी मुहैया कराई है।

इस संपूर्ण ब्रह्मांड में अभी तक ज्ञात सांसों के स्पंदन से युक्त नीली- हरितिमा युक्त पृथ्वी अपने जीवित परिवार युक्त ‘इकलौती ग्रह ‘ है, कितना दुखद है कि ‘मनुष्य ‘नामक एक इसी ग्रह का कथित सबसे बुद्धिमान जीव अपने कुकृत्यों से इस पृथ्वी को उसके सम्पूर्ण वानस्पतिक और जैविक सम्पदा के साथ ‘स्वयं मानव प्रजाति ‘भी ‘सब कुछ समझते हुए ‘भी ‘विध्वंस ‘ और’ महाविनाश ‘करने को उद्यत है। इस दुनिया के कुछ दूरदर्शी मानवों के कुछ समूह इस खतरे को भांपकर इसके सुधार का भरपूर प्रयास करने का प्रयत्न कर रहे हैं, परन्तु अत्यन्त दुख की बात है कि इसी दुनिया के कुछ ‘दंभी मूर्ख ‘सत्ता के दंभ में चूर, उस गंभीर और नेक प्रयास को भी धूलधूसरित करके रख देते हैं। आश्चर्य और दुखद है कि इन मूर्ख दंभियों को ये समझ नहीं आता कि भयावह प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग से, लाखों सालों से जमे ग्लेशियरों के पिघलने से इस दुनिया के सभी वनस्पतियों और जीवों का भयंकरतम विनाश होगा, कोई नहीं बचेगा (समस्त मानव प्रजाति भी) सब कुछ तबाह हो जायेगा। इसलिए विश्व के प्रबुद्ध लोगों का यह नैतिक, सामाजिक, समयसापेक्ष और न्यायोचित कर्तव्य है कि उन भटके हुए मूर्ख सत्ता के मद में चूर दंभियों को किसी तरह समझाबुझाकर पटरी पर लांए और इस विध्वंस और महाविनाश के कग़ार पर खड़ी पृथ्वी के पर्यावरण और प्रकृति को बचाकर इसके अद्भुत और अतुलनीय जैव व वानस्पतिकीय विविधता को किसी भी सूरत में बचाएं।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

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