तरल पदार्थ
चुनाव की ऋतु थी, वैसे ही जैसे प्रेम करने की ऋतु होती है, गोलमाल करने की ऋतु होती है, रिश्वत लेने की ऋतु होती है और घी में डालडा और डालडा में चूना मिलाकर बेचने की ऋतु होती है I इसे आप मौसम भी कह सकते हैं I क्षेत्र के सर्वमान्य और सर्वव्यापी नेताजी कुमार केसरी के साथ मैं टहल रहा था और उनके जादुई करतब तथा व्यावहारिक पांडित्य पर मुग्ध हो रहा था I चतुर्दिक मोटरगाड़ियाँ ध्वनि विस्तारक यंत्रों से सज्जित हो दौड़ रही थी I चारों ओर चुनावी चर्चा की जायकेदार चटनी से भोजन को सुस्वादु बनाया जा रहा था I मौसम की भविष्यवाणी की भांति चुनाव परिणामों की भविष्यवाणियाँ की जा रही थीं I कुछ नारे तथा कुछ सुनहरे शब्द हवा में तैर रहे थे I ऐसा लगता था कि चुनाव के उपरांत भारत की गरीबी सात समुद्र पार भाग जाएगी ,न कोई भूखा होगा, न ही नंगा I सर्वत्र शांति और सद्भाव का वातावरण व्याप्त हो जाएगा I दूध की नदियां बहेंगी और सोने-चांदी की सड़कें बनेंगी I सचमुच रामराज्य आ जाएगा I पार्टियों के चुनाव कार्यालयों के आगे गांधी जी की तस्वीर टंगी थी तथा कार्यालय के पीछे बम बनाने एवं रुपयों के आदान – प्रदान का अहिंसक कार्यक्रम पूर्ण मनोयोग के साथ संपन्न किया जा रहा था I मोटरगाड़ियों पर तरह – तरह के बैनर और चुनाव चिह्न टंगे थे I किसी पर ‘पीपल छाप’ सुशोभित हो रहा था तो किसी मोटरगाड़ी पर ‘लालटेन’ चमक रहा था I कहीं ‘शेर छाप’ बहादुरी की जगह बेचारगी का आभास दे रहा था तो कहीं ‘गाय’ का प्रतीक सभी समस्याओं का समाधान लेकर प्रस्तुत था I केसरी जी मुझे जीवन रहस्य का बोध करा रहे थे तथा आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर लंबा – सा व्याख्यान दे रहे थे I उसी समय एक शेर ब्रांड गाड़ी आती हुई दिखाई दी I केसरी जी ने जल्दी-जल्दी अपनी कमीज में शेर ब्रांड टांका और जिंदाबाद – जिंदाबाद करने लगे I मुझे घोर आश्चर्य हुआ कि कुछ ही क्षण पूर्व केसरी महोदय ‘लालटेन’ के समर्थन में नारे बुलंद कर रहे थे और उस दल को अंधकार पर प्रकाश की विजय बता रहे थे I शेर ब्रांड गाड़ी ठहरी और उसमें से गांधी छाप नेताजी ने धरती पर पाँव रखा I वे गांधी त्रय (गाँधी टोपी, गांधी धोती, गांधी कुरता ) से सुसज्जित और इत्र में सराबोर थे I जनता की समस्याओं से करुणार्द होकर वे धरती की धूल फांकने आए थे I उन्होंने केसरी जी को हंसी और प्रणाम से उपकृत किया तथा उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछा I केसरी जी ने नेता का पहला गुण प्रकट किया – हाँ, तबीयत तो ठीक है I अब मेरी तबीयत का क्या ठिकाना ? आज हूँ, कल नहीं परंतु जाते-जाते जनप्रिय पार्टी और देश के लिए कुछ कर जाना चाहता हूँ I उनके चेहरे पर गंभीरता थी I
“आपके इलाके में मेरी स्थिति अच्छी होनी चाहिए I” नेताजी ने अत्यधिक विनम्रता दिखाते हुए अपना मुंह इस प्रकार बनाया जैसे उनका बाप मर गया हो I
“हां, और सब तो ठीक है परंतु ………..I” केसरी जी ने जानबूझकर वाक्य को अधूरा छोड़ दिया I “परंतु वरंतु क्या ?” जहां आप जैसे सक्रिय कार्यकर्ता हों वहां के लिए हम लोगों को चिंता नहीं होती I” नेता जी ने गोली की भांति बात दागी I
“ वो तो ठीक है लेकिन भारतीय सर्वहारा पार्टी के लोगों ने जनता को कुछ बहका दिया है I वे दोनों हाथों से पैसे बांट रहे हैं I लोग भी तो कितने स्वार्थी और लालची हो चुके हैं I नैतिकता पाताल में जा रही है, दो – चार पैसों के लिए लोग अपना ईमान बेच रहे हैं I” केसरी जी की कातरता से ऐसा लग रहा था मानों अखिल विश्व में नैतिकता के वे इकलौते ध्वजधरी हों I
“तो हम लोग भी किसी से पीछे रहनेवाले नहीं हैं I आलाकमान का अलिखित आदेश है कि किसी भी कीमत पर विजयश्री हमें मिलनी चाहिए I इस क्षेत्र में हम पैसे बिखेर देंगे I पैसे की आप चिंता न करें I प्रशासन में भी हमारे हैं I” नेताजी ने केसरी जी को आश्वस्त करते हुए रुपए का बंडल थमा दिया I
धूल और भाषण उछालते हुए गाड़ी जब आगे चली गई तो मैंने केसरीजी से पूछा –
“आप तो कुछ देर पहले लालटेन छाप के समर्थन में नारे लगा रहे थे और अब जनप्रिय पार्टी के प्रत्याशी से रुपए ……..I”
मेरी बात पूर्ण होने से पहले ही उन्होंने गीता के निष्काम कर्मयोग की कलियुगी व्याख्या आरंभ कर दी – “तुम लोग केवल एम ए, बी ए कर लेते हो, व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त नहीं करते I आधुनिक शिक्षा प्रणाली का यही तो दुर्गुण है I मुझे किसी पार्टी से क्या लेना देना ! कोई विजयी हो, मुझे तो कुछ मिलनेवाला नहीं है, मैं तो केसरी का केसरी ही रहूंगा I किसी का विरोध करने से मुझे क्या मिलता ? मैं तो सर्वदलीय नेता हूं I सभी दलों और खेमों में मेरी पैठ है, कोई भी दल सत्तासीन हो मेरा काम नहीं रुकेगा I किसी सिद्धांत – विद्धांत से मेरा विश्वास नहीं है I सच बात तो यह है कि किसी भी दल का कोई सिद्धांत नहीं है I जनप्रिय पार्टी भी मेरी अपनी है और सर्वहारा पार्टी से भी मेरी सहानुभूति है I अरे मैं तो तरल पदार्थ हूँ तरल……… जिस बर्तन में रख दो, मैं उसी का आकार ग्रहण कर लूंगा I मैं निराकार हूं – निरानंद और निष्काम भी I” केसरी जी के व्याख्यान में उनका आत्मानुभव झलक रहा था I
“लेकिन देश हित में तो यह उचित नहीं है I” मैंने अपना अंतिम तर्क प्रस्तुत किया I
केसरी जी कुछ देर तक मौन रहे, फिर शुरू हो गए – “देशहित की चिंता किसे है ? जो सत्ता में है उसे अपनी तिजोरी भरने से फुर्सत नहीं है और जो किसी कारणवश सत्ता से बाहर है, उन्हें हल्ला करने से ही अवकाश नहीं है I वे तब तक शोर मचाते हैं जब तक किसी निगम या आयोग के अध्यक्ष या सदस्य के पद पर विराजमान नहीं हो जाते I शीर्ष नेताओं का यह हाल है तो हम लोगों का क्या पूछना ?” इतना कह केसरी जी आगे बढ़ गए और मैं खड़ा सोचता रहा कि उनका तरलवाद कितना व्यवहारिक है ……..!!!??!!!