सकून
वाह क्या कहने
कितना स्याना हूं मैं
इश्क़ करके
सुकून ढूंढ़ रहा हूं
इश्क़ तो नाम ही है
बेसकून का
गर खोना है सकूं अपना
तो इश्क़ करके देखले किसी से
तड़फेगा इतना
की होश भी न रहेगा अपना
लेटेगा कभी इस करवट
कभी उस करवट
करवट पर करवट बदलेगा
चाहता है जो सकूं
भूल जा इश्क़ करना
इश्क़ है वो बीमारी
जो न जीने देती
न ही मरने
गर इश्क़ और सकून
दोनों की है चाहत
तो खुदा के दरवाजे
पर दे दस्तक
वहां तुझे सकून मिलेगा
और आशिक भी तेरा
खुदा से इश्क़ ही है ऐसा
जहां है सकून ही सकून