वैदिक ज्ञान और महर्षि व्यास
आम जनों को समझने में आसानी हो, इसलिए महर्षि व्यास ने अपने वैदिक ज्ञान को चार हिस्सों में विभाजित कर दिया। वेदों को आसान बनाने के लिए समय-समय पर इसमें संशोधन किए जाते रहे हैं। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने इसे 28 बार संशोधित किया था। महर्षि व्यास का जन्म त्रेता युग के अन्त में हुआ था। वह पूरे द्वापर युग तक जीवित रहे। कहा जाता है कि महर्षि व्यास ने कलियुग के शुरू होने पर यहां से प्रयाण किया। महर्षि व्यास को भगवान विष्णु के 18वें अवतार माने जाते हैं । भगवान राम विष्णु के 17वें अवतार थे। बलराम और कृष्ण 19वें और 20वें। श्रीमद् भागवत कथा की रचना महाभारत की रचना के बाद की गई थी।
वैदिक ज्ञान और महर्षि व्यास ! महर्षि वेदव्यास के पिता ऋषि पराशर थे। उनकी माता का नाम सत्यवती था। पराशर यायावर ऋषि थे। एक नदी को पार करने के दौरान उन्हें नाव खेने वाली सुन्दर कन्या मत्स्यगंधा उर्फ सत्यवती से प्रेम हो गया। उन्होंने सत्यवती से शारीरिक संबंध स्थापित करने की अभिलाषा जताई। इसके बदले में सत्यवती ने उनसे वरदान मांगा कि उसका कुँवारापन भाव कभी नष्ट न हो और शरीर से मछली का दुर्गंध हमेशा के लिए चला जाय। यौवन जीवन पर्यन्त बरकार रहे और शरीर से मत्स्य गंध दूर हो जाए। ऋषि पराशर ने सत्यवती को यह वरदान दिया और उनके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया। बाद में सत्यवती ने ऋषि व्यास को जन्म दिया।