कवितापद्य साहित्य

काश! लौट आते वे दिन

काश!
लौट आते वे दिन।
तुम चाहती थीं,
मुझे कितना?
हर पल-क्षण
संग साथ रहने की,
व्याकुलता थी,
तुम्हारे रोम-रोम में।

काश!
लौट आते वे दिन।

नयनों में,
अधरों में,
कपोलों की लालिमा में,
वक्षस्थल की गोलाइयों में,
कोमल कलाइयों में,
तुम्हारे अंग-अंग में,
स्पर्श पाने की कामना,
उत्कट प्रेम की,
वो भावना।

काश!
लौट आते वे दिन।
मेरी छवि को,
पीने की ललक।
चित्र था मेरा,
तुम्हारा हृदय फलक।
तन को तन की,
मन को मन की,
स्पर्श पाने की,
कैसी थी कसक?

काश!
लौट आते वे दिन।

समर्पित किया था,
तन-मन-धन,
सब कुछ।
कैसी चाहत थी?
हर पल,
हर क्षण,
हर रन्ध्र से मुझे,
अपने अन्दर लेने की,
आतुरता,
व्याकुलता,
और परेशानी।
आज स्मरण कर,
मैं हूँ हैरान!

काश!
लौट आते वे दिन।

 

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)