अलग राह की राही हो तुम
कर्म के पथिक, सच है साथी, और कोई दरकार नहीं है।
अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।
मूरख थे, हम समझ न पाये।
व्यर्थ ही तुमको गले लगाये।
सीधे-सच्चे पथिक हैं हम तो,
तुमने विकट थे,जाल विछाये।
प्रेम की तुम व्यापारी शातिर, हमारा कोई इकरार नहीं है।
अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।
तुम्हारा कोई दोष नहीं है।
हमको ही था होश नहीं है।
षड्यंत्रों की देवी हो तुम,
पास हमारे कोष नहीं है।
सच के साथ विश्वास पनपता, किसी से कोई तकरार नहीं है।
अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।
नित तुम प्रेम के जाल विछाओ।
नए-नए नित शिकार फंसाओ।
मुझे छोड़ो, और आगे जाओ,
और किसी को तुम भरमाओ।
तुम कानून के जाल हो बुनती, हमारी कोई सरकार नहीं है।
अलग राह की राही हो तुम, जाओ हमें सरोकार नहीं है।।