शब्दों की बाजीगरी (व्यंग्य)
मैं इसलिए लिखता हूँ,
ताकि शब्दों की
ताकत को
पहचान सकूँ !
आप तो पति को
ऑफ़िस भेजने
और बच्चों के
टिफ़िन भरने की ही
तैयारी करतीं !
××××
2014 में चायवाले !
2019 में चौकीदार !
फिर ‘च’
मेरे चा.चौ. जी,
यह कर्म के प्रति
आपके अथाह
समर्पण ही है न !
××××
गाँवों में लोग
अब भी यही समझते हैं,
भाजपा और काँग्रेस
अमीरों की पार्टी है,
कम्युनिस्ट वहीं
गरीबों की पार्टी है?