कविता

राम फिर आ जाओ

हे राम!
एक बार फिर आ जाओ
अब और न इंतजार करवाओ।
धरा पर पापियों का आतंक बढ़ रहा है
हर ओर काला नाग
फन फैलाए खड़ा है।
बहन बेटियों में डर समाया है
ईमानदार का जीना दूभर हुआ है।
मेहनतकश बेबस हो रहा है
लुच्चे लफंगे बेईमान मजे कर रहे हैं
सरेआम छीनकर खा रहे हैं।
नीति पर चलने वाला धक्के खा रहा है
अनीति की राह पकड़ा जिसनें
धन धान्य से घर भर रहा है।
कब तक मूकदर्शक बने
देखते, आँखें फेरते रहोगे,
कहाँ तो रामराज्य के सपने दिखाते हो
बिखर रहा है जब वो सपना
तो फिर क्यों नहीं आते हो?
आखिर सामने आने से
क्यों कतराते हो?
तुम्हारी आड़ में
क्या कुछ नहीं हो रहा है?
तुम्हारा ही नाम तो
आखिर बदनाम हो रहा है।
हे राम!ऐसा कब तक चलेगा
आखिर कब तक
हमारा विश्वास टिकेगा?
बस अब देर न करो
ऐसा न हो हमारा विश्वास बिखर जाये
तुम्हारे नाम पर बट्टा लग जाये।
हे राम! अब मान भी जाओ
अब तो आने का मन बनाओ
विलंब करने से अच्छा है
आना ही है तो अभी आ जाओ
हे राम! एक बार फिर आ जाओ
हे राम! अब आ ही जाओ।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921