कविता

अभिलाषा

दिल का क्या है दिल तो
सदा ही मांगे More
दिल की अभिलाषाओं का
नहीं है कोई, ओर और छोर
जितनी पूरी करो
ख्वाहिशें बढ़ती जाती
एक के पूरी होते ही
‌ दूसरी सिर चढ़ जाती ।।

कभी अपनी तो, कभी
अपनों की, तमन्नाएं मचलती
‌फिर उनको पूरा करने की
‌ योजनाएं बनती
पूरी हो जाएं तो
खुशियों की, थाह न रहती
नहीं तो, बनकर असंतोष
दिल घर कर जाती ।।

ज़रूरतें तो सब की
अधिकतम पूरी, हो ही जाती
ज्यादा की इच्छाएं ही
अक्सर हमें रुलाती
प्रतिष्ठा का विषय
अगर हम बना बैठे तो
दिन का चैन और रातों की
नींदें उड़ जाती ।।

‌ ‌ दूजो की उपलब्धियों से
यदि हम, करें न तुलना
जो हमको हासिल है
उन पर हों खुश, क्यों ना
सही सोच और तालमेल से
सब कुछ संभव है
आकांक्षाएं पूरी होती
और संतुष्टि मिल जाती ।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई