बाल बलिदानी
इक्कीस से छब्बीस दिसंबर
सत्रह सौ चार के मध्य हुए
बलिदानी सप्ताह की बात बताते हैं,
अमर बाल बलिदानियोंं की
इक छोटी सी कथा सुनाते हैं।
जितना मुझको पता है सही या गलत
वो ही हम आपके सम्मुख रखते हैं।
इक्कीस दिसंबर का दिन था वो
जब आनंदपुर साहिब किला
श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने था छोड़ दिया।
बाइस दिसंबर को दोनों बड़े पुत्रों संग
चमकौर में अपना पैर था जमा दिया,
गुरुसाहिब की माता जी ने
दोनों छोटे साहिबजादों संग
रसोइए के घर में स्थान लिया।
चमकौर की भीषण जंग शुरू हो गई दुश्मनों से जूझते लड़ते हुए
गुरु साहिब के साहिबजादों
अजीत सिंह और जुझार सिंह ने
उम्र महज सत्रहव व चौदह वर्ष में ही
ग्यारह और साथियों के संग
धर्म और देश की रक्षा की खातिर वीरगति का वरण कर लिया ।
तेईस दिसंबर को गुरु साहिब की माता गुजरी जी संग
दोनों छोटे साहिबजादों को
मोरिंडा के चौधरी गनी और मनी खान ने
गिरफ्तार कर सरहिंद के नवाब को सौप दिया
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से बदला ले सके मन में मंसूबा था पाल लिया।
साथियों की बात मान विवश हो
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को
चमकौर छोड़ जाना ही पड़ा।
चौबीस दिसंबर को तीनों को
सरहिंद पहुंचा दिया गया
ठंडे बुर्ज में तीनों को वहाँ
नजरबंद कर दिया गया।
पच्चीस व छब्बीस दिसंबर को
दोनों छोटे साहिबजादों को
नवाब वजीर खान की अदालत में
पेश कर धर्म परिवर्तन कर
मुसलमान बनने का लालच दिया गया।
सत्ताइस दिसंबर को साहिबजादों जोरावर सिंह और फतेह सिंह पर
बेइंतहा जुल्म सितम ढाने के बाद
जिंदा दीवार में चिनवाकर
फिर गला रेत कर शहीद कर किया खबर सुनते ही माता गुजरी ने
तब अपने प्राण त्याग दिया।
बलिदानियों की कथा का
जितना ज्ञान था मैंने बता दिया,
अब आप भी इस कथा को
लोगों के बीच में जरुर ले जायें,
लोगों को धर्म रक्षा की खातिर
पूरे परिवार का देने वाले
श्री गुरुगोबिंद सिंह जी के जीवन से
आप अवगत जरूर कराएं।
जिससे जन जन प्रेरणा ले सके
इन बाल बलिदानियोंं के लिए
सबके शीष श्रद्धा भाव से झुक सके
श्री गुरु गोविंद सिंह के जीवन
हर कोई कछ तब प्रेरणा ले सके।
साथ ही छब्बीस दिसंबर
बाल बलिदान दिवस भारत ही नहीं
पूरे विश्व में साथ मनाया करे,
भारत सरकार इस दिवस को अब
बाल बलिदान दिवस घोषित ही करे।