इर्ष्या का सम्राज्य यहां
हाथ न बदले पांव न बदले सूरत वही पुरानी है
हर इंसा के अंदर मिलती बदली हुई कहानी है
अब द्वेश दिलों में फलता फूलता
इर्ष्या का सम्राज्य यहां
प्रेम भाव जो पहले था वो
दिखता है अब आज कहाँ
नेक इरादे कहीं नही हैं
फिसली हुई जवानी है………
सांसे तो उनकी चलती हैं
खुद के भरोसे नही रहे
बुद्धि विवेक न अपनी लगाते
गैर से सीखी बात कहे
कर्जे में जीवन डूबा है
सिमटी हुई रवानी है……….
गांव जो अब तक थे सुंदर
अब वो बहुत बर्बाद हुए
लोग पुराने नही रहे
फसाद नए आबाद हुए
न जाने कैसा (राज) है आया
अब नही आंख में पानी है…..
राज कुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उत्तर प्रदेश