फरियाद
दुनियाँ से जो चले जाते हैं
कष्टों से वो मुक्त हो जाते हैं
दुःखभरी जीवन जीने से क्या फायदा
जहाँ दुःख ही दुःरव का होता है कायदा
ये जग दुःरव का सागर है
खुशी का फूटा जहाँ गागर है
किस किसको सुनाऊँ अपनी फरियाद
कौन सुनेगा अब जग की सब संबाद
बेईमानों का ये जगत बसेरा है
धूर्त्तई का पग पग यहाँ डेरा है
अपनापन जहाँ पर रोता है
मर्यादा घर घर खो जाता है
लूट मार की हो गई रोजगार
यार ही बन जाता दुश्मन का यार
ईष्या द्वेष से भर गई संसार
मचा है चारों ओर हाहाकार
कौन बचाये जन जन की प्राण
बम बारूद से काँप रहा आसमान
पास पड़ोसी भी रूठ गये हैं
पारिवारिक दोस्ती भी टुट गये हैं
किस्मत का खेल निराला है
सुरक्षित नहीं कोई भी बाला है
लुटेरा निकला जान पहचान
कैसी नजारा हो गई भगवान
— उदय किशोर साह