जहर कौन है घोल रहा
अमृत की इस दरिया में
जहर कौन है घोल रहा
पत्ता पत्ता इस वन का
दुश्मन उनको बोल रहा
राम कृष्ण की इस धरती पे
ईष्या द्वेष में तौल रहा
गौतम नानक की वाणी में
नफरत की वाणी बोल रहा
रामराज्य की इस नगरी में
गद्दारों को है जोड़ रहा
इन्द्रधनुषी नभ में कोई
बम बारूद है डोल रहा
जाँत पॉत की पंक्ति में
खड़ा कर है मौन पड़ा
वोट पाने की जुगत में
अपने मुल्क को तोड़ रहा
कुर्सी पाने की चक्कर में
समाज को है फ़ोड़ रहा
अपनी मंसूबा पूरा करने में
हर हथकंडा जोड़ रहा
— उदय किशोर साह