लघुकथा

उम्मीद का अंकुर

बड़ा कारुणिक दृश्य है! तरुवर करुण क्रंदन कर रहे हैं, पंछी उड़ान छोड़कर उदास हैं, कारखाने की चिमनियां बराबर कालिख उगलती जा रही हैं और धरती मां पुकार कर रही है!
“कैसे निर्दयी हो तुम लोग! जहरीली गैस उगलती चिमनियों को देखकर तुम्हें भोपाल गैस त्रासदी भी याद नहीं आ रही है? कितने लोग मौत की नींद सो गए, कितने लोग शारीरिक अपंगता से लेकर अंधेपन के भी शिकार हुए! विकास के नाम फिर वही खुराफात!”
“अब विकास के लिए चिमनियां तो धुआं उगलेंगी ही न!” विकास का कहना था.
“भले ही चिमनियों को धुआं उगलने दो, पर ज़हरीली गैस से अपना व वृक्षों का सत्यानाश तो न करो न! पर तुम क्यों सुधरोगे?”
“अरे, तुम तो नादानों से भी नादान हो! कहते हो “बेटी-बेटा एक समान”, लेकिन क्या बेटी को मान देते हो! गर्भस्थ गुड़िया की जान लेते हुए तुम्हें जरा भी दया-माया नहीं आती! और-तो-और यह भी नहीं सोचते कि बेटी को जन्म न लेने दोगे, तो बेटों के लिए रिश्ता कहां से लाओगे?”
“नए पेड़ लगाने के बजाय तुम वृक्षों को काटकर कंकरीट के जंगल बनाते जा रहे हो, दूसरी तरफ तुम मिथाइलआइसोसाइनाइट जैसी जहरीली गैस से कीटनाशक बनाकर नन्हे-नन्हे अंकुरों के भी दुश्मन बने हुए हो.” धरती की पुकार करुण होती जा रही थी.
“स्थिति इतनी गंभीर हो जाएगी, मैंने कभी सोचा भी नहीं था!” विकास सोच में पड़ गया था!
धरती मां के मन में उम्मीद का अंकुर जन्म ले रहा था, उड़ान भरते हुए पंछियों की किलकारियां गूंजने लग गई थीं, धन्यवाद देते हुए तरुवर झुककर धरती मां का सजदा करने लगे थे.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244