कविता

/ भाषा /

अलग है मेरी भाषा तुम्हारी भाषा से,
अलग है दुनिया में मनुष्यों की भाषा
कई रूप हैं भाषा के, पुस्तक की भाषा
बोलचाल की भाषा, श्रम की भाषा
मूक-गूँगे की भाषा, शरीर की भाषा
माँ की भाषा, परिवार की भाषा
मौन भाषा, साधना की भाषा,
धर्म की भाषा, राजनीति की भाषा
भक्ति की भाषा, भूख की भाषा
अदालतों की भाषा, पुलिस थाने की भाषा,
वैद्यों की भाषा, बच्चों की भाषा
वेदों की भाषा, दलितों की भाषा
पंडितों की भाषा, पामर जनता की भाषा,
कुटिल तंत्र की भाषा, पीड़ा की भाषा
भाषा में अलग है भाषा, भाषा से
अलग है तुम्हारी भाषा, मेरी भाषा से
अलग-अलग होती है भाषा, हमारे बीच
मान्यता होती है उस भाषा का
अपनी – अपनी परिधि में, अमान्य है
अपनी परिधि से बाहर भाषा, दूसरी भाषा से,
अल्पत्व बोध है भाषा का वाद-विवाद
साधन है भाषा, हमारे विचारों का वाहक है
समझ में आनी चाहिए अपनी भावना
अन्यों को साफ-साफ, गरिमा भाषा की नहीं
हमारे विचारों की, अपनी उत्कृष्ट भावनाओं की,
बंधन होनी चाहिए बुरे विचारों को टकरानी चाहिए
एक दूसरे को कुचलाने की नहीं है भाषा
बहुत कुछ सीखना है हमें अनुभव की पाठशाला में
मानवता की भाषा दुनिया में
अभी भी, बाकी है भाई,
साथ-साथ चलने की भाषा,
एक दूसरे को समझने की भाषा
मनुष्य होकर जीने की भाषा
मूढ़-रूढ़ तत्वों को पार कर
प्रेम की भाषा दुनिया में
अभी भी, बाकी है भाई।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।