कविता

मिलन

 

कितना अच्छा लगता है ये शब्द

बस महसूस कीजिए

अपने आचार विचार में शामिल भर कीजिए।

फिर देखिए इसका सुखद अहसास

तब न कोई अपना या पराया लगेगा

न रिश्ता कोई पुराना लगेगा।

न जाति धर्म सम्प्रदाय की वंशी बजेगी।

इंसानों की भीड़ में इंसानियत की घंटी बजेगी।

सगे सौतेले या अन्जान चेहरे होंगे कोई

मन के भावों में आत्मिक अपनत्व फूटेगा

खून के रिश्ते और मन के रिश्तों में न अंतर लगेगा।

बहुत कमियां हैं हम सबके जीवन में

पर बहुत सी कमियों का अहसास तक नहीं होगा। क्योंकि जब हम पवित्र भाव से सबसे मिलना चाहेंगे

सबके सुख दुख में हम साथ खड़े नजर आयेंगे

तब हमें किसी बात का डर भी नहीं होगा

मिलन को डोर हमारा आपका संबल होगा।

तब धरा पर परिवर्तन दिखेगा,

हर ओर मिलन ही मिलन का परिदृश्य दिखेगा

जब मिलन मिलन और सिर्फ मिलन ही हमारा मंत्र होगा।

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921