कविता

रिश्तों का गणित

रिश्तों का गणित नहीं है किताब का गणित,
स्कूल के गणित से अलग है रिश्तों का गणित.
किताब के गणित में होते हैं निश्चित सूत्र,
बिना निश्चित सूत्रों के होता है रिश्तों का गणित.
रिश्तों के गणित में दो और दो चार होना नहीं है जरूरी,
कभी पांच-सात कभी तीन करता है रिश्तों का गणित.
रिश्तों का गणित वो सीढ़ी नहीं होती, जो सदा ऊपर की ओर ही जाए,
न जाने कितने अनुभव सिखा जाता है रिश्तों का गणित.
रिश्ते तो होते हैं नन्हे पौधे, जितना सींचोगे तुम इन्हें प्यार से,
उतना ही खिला जाएगा तुम्हारा जीवन रिश्तों का गणित.
रिश्ते तो वो खुशबू हैं, जितनी कद्र करोगे उनकी,
उतना महका देंगे ये तुम्हारा जीवन रिश्तों का गणित.
रिश्तों का गणित नहीं है स्कूल / किताब का गणित,
बड़ा ही विचित्र है रिश्तों का गणित.
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244