मानव सेवा की मूर्ति फ्लॉरेन्स नाइटिंगेल
इंग्लैंड में 12 मई 1820 में में जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल को आधुनिक नरसिंह आंदोलन का जन्मदाता माना जाना जाता है। उनकी याद में प्रतिवर्ष 12 मई को दुनियाभर में ‘वर्ड नर्सिंग डे’ के रूप में मनाया जाता है।
द फ्लोरेंस नाइटिंगेल को द लेडी विथ द लैंप के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई। वे एक समझदार सेवा धर्मी पढ़ी-लिखी विदुषी महिला थी। उनकी नरसिंह के अलावा लेखन में भी दिलचस्पी थी। बेक नस बनकर पीड़ित रोगी बीमार लोगों की सेवा मदद करना चाहती थी किंतु उनके माता-पिता नहीं चाहते थे। उन दिनों अस्पतालों में इतनी सुविधा उपलब्ध नहीं होती थी और नहीं नसों को ढंग का वेतन मिलता था। किंतु फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अपने धनारी परिवार में पैदा होकर व विलासिता के जीवन को त्याग कर कठिन पथ को चुना। बीमारों की तकलीफों की सेवा का जीवन भर का जिम्मा लेकर जो कदम उठाया वह अद्भुत था।एक दिन उन्होंने लिखा -“आज ईश्वर मुझसे बोला और मुझे अपनी सेवा में बुलाया।” प्रेरणादायक था। उनका जन्म इंग्लैंड में हुआ था। जर्मनी जाकर नरसिंह का कार्य सीखा और अपनी मातृभूमि इंग्लैंड में आकर “केयर ऑफ द सिक” की सुपरिंटेंडेंट बंद कर नर्सों को प्रशिक्षण देकर एक नई मिसाल को खड़ा करने का पुनीत कार्य किया। 1854 में घायल सैनिकों की सेवा हेतु रात्रि काल में गंभीर रोगियों को इलाज हेतु लैंप की रोशनी में रात रात भर इलाज कर उन्हें स्वास्थ्य लाभ देने की सेवा साधना से उन्हें *”लेडी विद द लैंप”* के नाम से जाना जाने लगा। 18ट58 में हुए क्रीमिया के युद्ध में उन्होंने आठ 38 महिलाओं के एक दल के रूप में स्वास्थ्य सेवा से बेजोड़ कार्य किया। उन्होंने1860 मैं नसों के लिए नाइटिंगेल स्कूल खोला। नर्सों का सम्मान बढ़ाने वाली व नर्सिंग में सेवा सुश्रुषा की अलग जगाने वाली वे दुनिया की एक महान् सेवा धारी, दयालु, मानव सेवा से ओतप्रोत नर्स थी।1860 में फ्लोरेंस के प्रयासों से ही उस समय आर्मी मेडिकल स्कूल की स्थापना हुई थी। फ्लोरेंस ने रोगियों के लिए खाने की व्यवस्था तक की। रोगियों की सेवा करती हुई रोग से ग्रसित तक हो गई किंतु हिम्मत नहीं हारी। दुखियों की सेवा करना का जो उन्हें सुकून मिलता था उसे वह दुनिया की सबसे बड़ी खुशी मानती थी। रात रात भर जाग कर, लालटेन की रोशनी में बीमारी व घायलों की सेवा की। महिलाओं को नर्सिंग के क्षेत्र में कार्य करने की प्रेरणा और सम्मान दिलाया जो आज भी प्रासंगिक है। जब भाइयों रोगियों की इतनी सेवा पर कोई ध्यान नहीं देता था। नहीं उनके लिए कोई व्यवस्थाओं का इतना कोई इंतजाम करता था तब फ्लोरेंस ने चिकित्सा के क्षेत्र में सेवा की मशाल को जलाकर दुनिया को रोशनी देने का काम किया। उन्हें महारानी विक्टोरिया ने “रॉयल रेड क्रॉस” से सम्मानित किया। उन्होंने *”नोट्स ऑन नर्सिंग”* पुस्तक लिखी जो नर्सिंग पाठ्यक्रम की प्रथम पुस्तक है। 1907 में किंग एडवर्ड ने फ्लोरेंस को *ऑर्डर ऑफ मेरिट* से सम्मानित किया। वे इस अवार्ड को प्राप्त करने वाली प्रथम महिला थी। वह सिर्फ महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण मानव हित में प्रेरणा स्रोत थी। रोगियों दुखियों गरीबों की सेवा ही मानव सेवा है। यह ईश्वरी सेवा से बढ़कर है। चिकित्सा का धर्म ही रोगियों की सेवा है।किंतु आज यह सेवा कहीं -कहीं दिखावा तो कहीं लूटमार तो कहीं इलाज के नाम पर धन संग्रह का ड्रामा भी चल रहा है। कबीर जैसी विश्व महामारी में कुछ चिकित्सक व नर्से जान हथेली पर रखकर सेवा कर रहे थे तो बहुत से धन कमाने का मौसम समझ रही थे। इस पवित्र पेशे को बदनाम करने वाले भी आज कम नहीं है। चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को लोग भगवान समझते हैं किंतु कुछ कमाने में मानवीय संवेदना को तिलांजलि देने पर भी डटे हुए हैं। उनके लिए पैसा ही भगवान है। हर इंसान का अपना स्वास्थ्य अधिकार है। इस अधिकार की रक्षा करना चिकित्सा क्षेत्र के लोगों का ज्यादा बड़ा दायित्व है। न कि रोगी को गरीब देखकर भगा देना और पैसे वाले को देख कर लूट लेना।
— डॉ. कान्ति लाल यादव