लघुकथा

नया जीवन

कोर्ट में तीनों ने मिलकर आइसक्रीम खाई थी और एक साथ घर वापिस आए थे. बच्चा खुश हो खेलने में लग गया था, पति-पत्नी के मन में आलोड़न चल रहा था.
“लड़-झगड़कर कोर्ट में मामला दर्ज कराकर 3 साल से अलग रहना कोई मामूली बात तो नहीं होती न! 2 साल के बेटे को लेकर अलग रहना, समाज के ताने सुनना, बेटे को पिता की याद से भी दूर रखना, उफ्फ कितना मुश्किल होता है!” पत्नी सोच रही थी.
“बहुत प्यार करने वाली पत्नी, प्यारा-सा बेटा, जरा-सा मनमुटाव और सब दूर! यह भी कोई जिंदगी होती है!” पति की सोच थी.
आज कोर्ट में तीनों मौजूद थे.
आज का दिन उस मासूम का था. पिता को देखते ही बच्चा उनके पास दौड़ गया. सुनवाई शुरु होने से पहले ही पिता के साथ रहने की उसकी मासूम जिद्द ने मां के मन के लैंप को प्रज्वलित कर दिया. उसे अपने बचपन के दिन याद आ गए, जब वह बचपन में लैंप की मद्धिम रोशनी में पढ़ते-पढ़ते अलग रह रहे पापा को याद कर चुपके-से रोती रहती थी. कोर्ट परिसर में मौजूद लोगों ने उनको समझाया कि बच्चे का भविष्य खराब न करें. बच्चे की खातिर अपनी जिद्द छोड़ दें और फिर से एक हो जाएं. पिता के मन का लालटेन भी रोशन हो चला. उसने पत्नी से बात की और अपनी गलती के लिए सॉरी बोला और कहा- “अब कोई गलती नहीं करूंगा, चलो साथ घर चलें.”
बच्चे की मासूम जिद्द ने मासूमियत को नया जीवन दे दिया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244