लघुकथा

दुआओं का दान

एक कार दुर्घटना में नवीन के पिताजी का बहुत-सा रक्त बह जाने और अस्पताल में उनके ग्रुप का रक्त मौजूद न होने के कारण रक्त लेने वाला ही नहीं रहा था. नवीन के ऑफिस से पहुंचने से पहले ही वे इस दुनिया को अलविदा कह चुके थे.
नवीन को खुद भी लग रहा था, कि काश! उन्हें समय पर रक्त मिल जाता, तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.
अब वह खुद भी रक्तदान करता, साल में दो बार रक्तदान का कैंप लगवाता और रक्तदान के लिए ऑनलाइन-ऑफलाइन हर संभव प्रयास करता.
उसे रक्तदान के साथ दुआओं का दान भी मिल रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244