बहुत कुछ कहती हैं अँगुलियाँ
अंगुलियाँ
उमड़ा देती हैं अभिव्यक्ति का सागर
इशारों ही इशारों में
अंगुलियों की अपनी भाषा होती है
जिसके लिए
न कोई शिक्षा जरूरी है
न साक्षरता,
ये अंगुलियां ही हैं जो
समर्थ होती हैं
सारे काम करने और करवा देने में
चाहे श्वेत हो या श्याम।
जमाने भर के काम कर देती हैं
अंगुलियाँ
खुद के नाचने से लेकर
किसी को भी नचा डालने तक में
माहिर हैं अंगुलियाँ,
कहीं कभी एक ही अंगुली काफी होती है
कुछ भी हरकत कर गुजरने को,
कभी टेढ़ी अंगुली अपना कमाल दिखा देती है
अंगुलियों का ही करिश्मा है कि
कभी अकेली,
तो कभी एक-दो-तीन-चार
मिलकर अंगूठे के नेतृत्व में
कयामत ला देती हैं
या फिर
रच देती हैं
नवसृजन की भावभूमि।
अंगुलियाँ
कभी पाप कराती हैं
और कभी पुण्य भी दिलाती हैं।
अंगुली दिखाने भर के भी
पुण्य होते हैं
अपने-अपने,
अपने-अपने अर्थ लिए होती हैं
अंगुलियों की मुद्राएं
आजकल कहीं भी
कुछ भी हो सकता है
कोई अंगुली करता है, कोई दिखाता है,
कोई टेढ़ी करता है, कोई बताता है,
कोई दो को मिलाकर
विजय का जयघोष करता है।
अंगुलियों के बूते ही
कभी आदमी
तर्जनी दिखाकर
ईश्वर का अस्तित्व दर्शाता है,
और कभी
खुद अंगुलीमाल होकर
ग़ज़ब ढा देता है।
अंगुलियां इसीलिए
पूर्ण होती हैं अपने आप में।
— डॉ. दीपक आचार्य