कथा साहित्यलघुकथा

माँ की प्रतिष्ठा (लघुकथा)

माँ की प्रतिष्ठा

“माँ, ये मैं क्या सुन रही हूँ। भैया बता रहे थे कि आपने कल से खाना-पीना बंद कर दिया है।” सुमति ने परेशानी भरे स्वर में पूछा।
“बिल्कुल सही सुना है तुमने और यही मेरा प्रायश्चित है।” माँ दुखित स्वर में बोली।
“प्रायश्चित ? कैसा प्रायश्चित ?” सुमति ने आश्चर्य से पूछा।
“तुम्हें जन्म देने का प्रायश्चित… ऐसे संस्कार तो नहीं दिए थे हमने तुम्हें … हमारी समधन जी वृद्धाश्रम में हैं, यह जानकर मेरे गले से निवाला नीचे कैसे उतरेगा ? छी… छी… मुझे तो अपने आप से घिन आ रही है कि मेरी बेटी यूँ अपनी सास को वृद्धाश्रम कैसे भेज सकती है ?” माँ उबल-सी पड़ी थी।
“अच्छा… तो ये बात है। माँ, तुम उन्हें जानती नहीं हो कि हमने उन्हें वृद्धाश्रम क्यों भेजा है। और फिर वृद्धाश्रम कोई ऐरा-गैरा नहीं है। सब सुविधाएँ उपलब्ध हैं वहाँ। उसके संचालक आपके दामाद रमेश जी के अच्छे मित्र भी हैं। वहाँ उनकी देखभाल करने वाले अनेक भले लोग हैं।” सुमति सफाई देना चाह रही थी।
“बेटा, मैं सिर्फ इतना जानती हूँ कि वे जैसी भी हैं, रमेश जी की माँ हैं और उनकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी रमेश जी और तुम्हारी दोनों की है। तुम दोनों तो जानते हो उनके बारे। तो तुम लोगों से भला बेहतर देखभाल उनकी और कौन कर सकता है ?” माँ बहुत व्याकुल हो गई थीं।
“लेकिन माँ…” सुमति कुछ बोलना चाहती थी।
“सुमति, मुझ पर एक एहसान करना बेटा। आज जब हमारे दामाद जी घर आएँ, तो कृपा करके उन्हें लेकर यहाँ आ जाना और मुझे भी उसी वृद्धाश्रम में भर्ती करवा देना, जहाँ तुम्हारी सासू माँ हैं। अब तो मैं समधन जी के साथ ही बैठकर अन्न-जल ग्रहण करूँगी।” कहकर माँ ने फोन काट दिया।
दो मिनट बाद ही रमेश के मोबाइल की घंटी बजने लगी। उन्होंने अपनी सासू माँ को चुप रहने का ईशारा किया और मोबाइल उठाते हुए कहा, “हाँ सुमति बोलो, क्या बात है ?”
“सुनिए जी, आप जहाँ भी हैं, तुरंत घर आ जाइए। बहुत ही जरूरी काम है।” सुमति की आवाज से उसकी परेशानी स्पष्ट रूप से झलक रही थी।
“मैं भी बस घर पहुँच ही रहा हूँ। सासू माँ ने हम दोनों को अर्जेंट घर बुलाया है। तुम तैयार रहो। मैं बस आधे-पौन घंटे में घर पहुँचता हूँ, फिर चलेंगे।” रमेश जी ने कहा।
“अरे नहीं, वहाँ इतनी जल्दी जाने की जरूरत नहीं। पहले हमें प्रायश्चित्त करने वृद्धाश्रम जाना हैं। माँ जी से माफी माँगकर उन्हें अपने साथ लेकर मेरे मायके जाना होगा। वरना मैं अपनी माँ को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगी।” बोलते-बोलते सुमति की आँखों में आँसू आ गए थे।
“लेकिन…।” रमेश की बात अधूरी ही रह गई।
“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं। यदि आपको मेरा मरा मुँह नहीं देखना है, जो जितनी जल्दी हो सके, घर पहुँचो। वृद्धाश्रम से माँ को लेते हुए हमें जल्दी ही मेरे मायके पहुँचना है।” सुमति ने अपना अंतिम निर्णय सुना कर फोन काट दिया।
फोन कटते ही माँ ने अपने दामाद रमेश जी से कहा, “लगता है तीर एकदम निशाने पर लगा है।”
“हाँ… धन्यवाद माँ जी। काश ! मैं अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेजने से पहले ही आपसे डिसकस कर लिया होता, तो इस महापाप का भागी न बनना पड़ता। खैर, देर आयद दुरस्त आयद। लीजिए, आप एक और समोसा लीजिए न। बहुत टेस्टी हैं। मैं भी अब निकलूँगा अपने घर। वृद्धाश्रम की फार्मालिटी पूरी कर दो-ढाई घंटे बाद फिर से आता हूँ सुमति और माँ को लेकर।” रमेश ने अपनी सास से कहा।
“जरूर बेटा। सुमति की तरफ से मैं आपसे माफी माँगती हूँ। उसने समधन जी को वृद्धाश्रम भेजने के लिए आपको मजबूर करने के लिए जो भी गलती की, वह माफी के लायक तो नहीं, फिर भी हो सके तो माफ कर दीजिएगा। अब वह अपनी गलती सुधारने जा रही है, तो उसे एक अवसर जरूर दीजिए।” माँ ने कहा।
जल्द मिलने के वादे के साथ रमेश जी ने उत्साहपूर्वक उनसे विदा ली।

– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

*डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा

नाम : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा मोबाइल नं. : 09827914888, 07049590888, 09098974888 शिक्षा : एम.ए. (हिंदी, राजनीति, शिक्षाशास्त्र), बी.एड., एम.लिब. एंड आई.एससी., (सभी परीक्षाएँ प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण), पीएच. डी., यू.जी.सी. नेट, छत्तीसगढ़ टेट लेखन विधा : बालकहानी, बालकविता, लघुकथा, व्यंग्य, समीक्षा, हाइकू, शोधालेख प्रकाशित पुस्तकें : 1.) सर्वोदय छत्तीसगढ़ (2009-10 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 2.) हमारे महापुरुष (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 10-10 प्रति नि: शुल्क वितरित) 3.) प्रो. जयनारायण पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 4.) गजानन माधव मुक्तिबोध - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 5.) वीर हनुमान सिंह - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 6.) शहीद पंकज विक्रम - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 7.) शहीद अरविंद दीक्षित - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 8.) पं.लोचन प्रसाद पाण्डेय - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 9.) दाऊ महासिंग चंद्राकर - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 10.) गोपालराय मल्ल - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 11.) महाराज रामानुज प्रताप सिंहदेव - चित्रकथा पुस्तक (2010-11 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में 1-1 प्रति नि: शुल्क वितरित) 12.) छत्तीसगढ रत्न (जीवनी) 13.) समकालीन हिन्दी काव्य परिदृश्य और प्रमोद वर्मा की कविताएं (शोधग्रंथ) 14.) छत्तीसगढ के अनमोल रत्न (जीवनी) 15.) चिल्हर (लघुकथा संग्रह) 16.) संस्कारों की पाठशाला (बालकहानी संग्रह) 17.) संस्कारों के बीज (लघुकथा संग्रह) अब तक कुल 17 पुस्तकों का प्रकाशन, 80 से अधिक पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का सम्पादन. अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादक मण्डल सदस्य. मेल पता : [email protected] डाक का पता : डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा, विद्योचित/लाईब्रेरियन, छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक निगम, ब्लाक-बी, ऑफिस काम्प्लेक्स, सेक्टर-24, अटल नगर, नवा रायपुर (छ.ग.) मोबाइल नंबर 9827914888