आम सी लड़की
सुन कर मोहब्बत के
अधूरे किस्से सहम जाती है
आम सी लड़की।
अजनबी लोगों को देख
घबराकर छुप जाती है
आम सी लड़की।
माँ के आंचल को,पापा के कंदे को
अपनी ढाल समझती हैं
आम सी लड़की।
इश्क़ तो दूर
उसके नाम से भी डर जाती है
आम सी लड़की।
इश्क़ लिखती है, इश्क़ पढ़ती है
मगर इश्क़ करने से डरती है
आम सी लड़की।
मिलती नहीं,दिखती नहीं
कहीं भी आजकल
आम सी लड़की।
— राजीव डोगरा