लघुकथा

हवन

हमारे मोहल्ले में एक अंकल जी गायत्री परिवार से जुड़े हैं। पिछले कई सालों से प्रत्येक रविवार को वे गायत्री मंदिर में हवन करने जाते हैं। उनका प्रयास हमेशा यही रहता है कि वे अपने साथ मोहल्ले और अपने परिचितों में से कम से कम एक दो तीन ऐसे लोगों को जरूर लेकर जाते थे, जिनमें कुछ ऐसी बुराइयां होतीं, जिसका कुप्रभाव उनके जीवन में पड़ता था, लेकिन उन्हें किसी के समझाने का फर्क नहीं पड़ता था। ऐसा भी नहीं था,कि हर कोई अंकल जी बात मानकर उनके साथ चल ही देता था, लेकिन अंकल जी नियम से अपनी जिम्मेदारी पूरी करते रहे। ऐसा भी नहीं था कि हर कोई एक बार में उनके साथ हवन में जाने भर से अपनी बुराई का त्याग कर ही देता था। लेकिन कई लोग ऐसे भी थे, जो उनके साथ पहली बार उनकी बात मान कर जाते थे, लेकिन उनमें से कई लोग ऐसे भी होते थे,जो अगली बार स्वयं ही वहां पहुंच जाते। जिसका परिणाम यह है कि आज बहुत से लोग अपनी बुराइयां जैसे, नशा करना, छोटी मोटी चोरी करना, छोटी छोटी बात विवाद, मारपीट करने, छोटे बड़े का अपमान करना,घर में क्लेश और में मारपीट करना, सिर्फ अपना स्वार्थ सिद्ध करना आदि हवन कुंड में स्वाहा कर चुके हैं। कुछ लोग समय की विवशता वंश अपने घर पर ही गायत्री माता का हवन अनुष्ठान करने लगे हैं। अंकल जी के निस्वार्थ प्रयासों का परिणाम आज दिख रहा है कि मोहल्ले के अधिकांश लोगों की बुराइयां तिरोहित हो गई हैं और अब मोहल्ले का माहोल एकदम बदला बदला सा दिखने लगा। कुछ युवाओं की पहल पर अंकल जी की सहमति और बुजुर्गो के संरक्षण में तीज त्योहारों पर मोहल्ले के रामलीला मैदान में सार्वजनिक हवन का आयोजन भी होने लगा है। और लोग खुशी खुशी उसमें शामिल होकर अपनी बुराइयां स्वयं ही अपनी आहुति के साथ हवन कुंड के हवाले कर रहे हैं। अब तो अंकल जी की नई पहचान हवन वाले अंकल की हो गई है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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