गजल
किससे कहूँ, कौन सुनेगा, सब अपने में मस्त हैं,
आज मुझे जरूरत है साथ की तो सब व्यस्त हैं।
सर्द रात और ये तन्हाई ही साथ दे रही हैं मेरा,
बाकी मेरे अपने तो खुद के दुःखों से ही त्रस्त हैं।
मैं हूँ ना, ये कोई नहीं कहता पास आकर मुझसे,
देखो! सब अपना काम निकालने में अभ्यस्त हैं।
बस उससे उम्मीद है लेकिन उसकी भी मजबूरी है,
वो खुद की जिम्मेदारियों से ही हुए बहुत पस्त हैं।
“विकास” के हिस्से में नहीं लिखा सुकून ईश्वर ने,
दो बोल प्यार के लिए उसने कब से फैलाये हस्त हैं।
— डॉ विकास शर्मा