नववर्ष
दो हजार तेईस की विदाई और
दो हजार चौबीस के शुभागमन की बेला पर
आप सब छोड़िए शिकवा शिकायत
हंसी खुशी विदा कीजिए जाते हुए
वर्ष दो हजार तेईस को,
क्या मिलेगा आखिर अब आपको
या ईर्ष्या द्वेष निंदा नफरत से,
इससे बेवजह आपकी निंदा होगी
आपके मेहमाननवाजी की बदनामी होगी।
इसलिए अपनी छवि खराब न कीजिए
आते हुए नववर्ष दो हजार चौबीस के मन में
न कोई शक -वो -सुबह अभी से पैदा कीजिए।
जितनी उम्मीद है आपको नववर्ष से
ऐसी ही उम्मीदें की थी आपने
वर्ष दो हजार तेईस से भी तो।
इसमें आपका कोई दोष नहीं है
यह तो मानव प्रकृति है,
जिससे जितनी ज्यादा हम उम्मीद करते हैं
उसे अपने दिल दिमाग से उतनी ही गंभीरता से
बड़ी जल्दी दूर भी कर देते हैं।
जब उससे अपनी उम्मीदों की पूर्ति होते नहीं देखते हैं,
तब उसे नजर अंदाज कर दूरियां बनाने लगते हैं,
उसे बिसारने का हर संभव प्रयास ही नहीं
अंततः दूर हो ही जाते हैं।
हम आपसी रिश्तों में भी ऐसा ही करते हैं
जैसे नववर्ष पर शुभकामनाओं की हम झड़ी लगा देते हैं,
औपचारिकता वश ही सही जाने अंजाने हर किसी के
सुख समृद्धि की कामना भी करते हैं,
पर ईमानदारी से सबकी शुभता की चाह
बस यदा कदा या अपवाद स्वरूप ही रखते हैं।
नववर्ष पर हम भी आज जैसे
आप सबको नववर्ष की शुभकामनाएं दे रहे हैं,
आप कितना खुश हैं इस पर के बाद
इसकी चिंता भूलकर भी भला कब कर रहे हैं।
तब जा रहे वर्ष की विदाई और नववर्ष के आगमन पर
हम इतने ऊहापोह में क्यों उलझ रहे हैं?
ईश्वर को नमन वंदन और धन्यवाद क्यों नहीं कर रहे हैं?
हम सब खुश रहने के साथ सबकी शुभता का
हर संभव ईमानदार चिंतन क्यों नहीं कर पारहे हैं?
और सारा दोष इस वर्ष उस वर्ष को देकर
औपचारिकता की आड़ में बड़ी तसल्ली कर रहे हैं
नववर्ष के आगमन जाते वर्ष के इस अवसर पर ही
सिर्फ आज एक दिन ही क्यों?
इतना नाचते गाते और हुड़दंग कर
जबरन प्रसन्न हो रहे हैं,
इस विशेष अवसर को औपचारिकता की भेंट
आखिर इतना क्यों चढ़ा रहे हैं?
अपने आपको खुद ही गुमराह कर रहे हैं,
नववर्ष के स्वागत की औपचारिकता निभाकर
विचार कीजिए आखिर कौन सा तीर मार रहे हैं?