तू मत डर
तू मत डर बिल्कुल मत डर,
तेरे डर में ही तेरी हार है,
ये दुनियावयी लोग मन से बीमार है,
तुझे पता है
दुनिया डरती है उन औरतों से
जो दुनिया से नहीं डरते,
सभी खुराफाती लग जाएंगे डराने,
हां तुझे डराने,
तेरी हिम्मत मिटाने,
तुझे पूरी तरह हराने,
और भी चाहेंगे क्या क्या न जाने,
लेकिन तू मत डर,
बिल्कुल मत डर,
कुछ ऐसा कर कि लोग तुझसे जले,
रह जाना है तुझे सबसे भले,
वो उबाल ला अपने खून में
कि तेरे बिना कुछ भी न चले,
हर गरीब गुरबत को लगाता चल गले,
तू मत डर, बिल्कुल मत डर,
डरा के रख,
खामोश रख,
पाखंडियों को,
जातिवादियों को,
पुरुष मानसिकता से पीड़ित बीमारों को,
जाति,धर्म के तरफदारों को,
इसी में आधी दुनिया की भलाई है,
जलने दे वो आग जिसे
मुश्किलों से घिर तूने सुलगायी है,
कोई रोक नहीं सकता
तुझे सिंहासन सजाने से,
तेरे नाम का डंका बजाने से,
तू मत डर, बिल्कुल मत डर।
— राजेन्द्र लाहिरी