प्रारब्ध
न कोई शिकवा
न शिकायत है
कर्म करना है
कर रहा हूँ
क्या पाऊँगा
क्या खोऊँगा
इसका कुछ पता नहीं
सब विधि का विधान है
जो प्रारब्ध में लिखा
वही मिलेगा
पर क्या लिखा
न तुझे खबर
न मुझे खबर
दोनों अनजान हैं
बस कर्म करता चल
बाकी सब छोड़ उस पर
— ब्रजेश गुप्ता