कहानी – श्रेष्ठता की पहचान
आज मंदिर के अंदर गर्भगृह में चारो ओर सन्नाटा था।पूर्व दिवस की अपेक्षा आज कुछ ज्यादा ही सन्नाटा नजर आ रहा था।इस सन्नाटे को अनदेखा करते हुए मंदिर का पुजारी अचानक मंदिर में प्रवेश करता है। और अपनी दैनिक दिनचर्या पंचोपचार,आदि पूजा करने की तैयारी शुरु करने वाला ही था,कि उसकी नजर गर्भगृह में पड़े पूजा सामग्रियों पर पड़ जाती है। आश्चर्य प्रकट करते हुए अनायास उसके मुँह से निकल पड़ता है- “अरे! यह क्या ?” “सारी पूजा के सामग्रियां बिखरी पड़ी है!!” “आखिर! यह सब किसने किया होगा?” और वह गहरी सोंच में डूब जाता है।और मन ही मन विचार करता है- “मंदिर के बाहर और अंदर सभी जगह मजबूत ताले लगे हुए थे,जिसको मैने आकर अभी-अभी खोले हैं,पर इस तरह से यहाँ के सारे पूजा सामान किसने बिखेरे होंगे?”
और फिर वह पुजारी सारे सामान को समेटने के लिए निचे फर्स की तरफ झुकता है।तभी अचानक मंदिर के गर्भगृह से रुष्टता भारी समवेत स्वर में आवाज आती है- “पुजारी जी ठहरो! ठहरो!”
पुजारी जी सकपका जाता है।और फिर अपने आप को सम्हालते हुए लड़खड़ाती जुबान पर कहता है- “अरे भाई लोग! आs..आप कौन हैं?और मुझे इस प्रकार से क्यों मना कर रहे हैं?मुझे भगवान की पूजा करनी है,आप लोग मुझे मत रोको।” “खैर!आप लोग कौन हो?और क्या चाहते हो? और आप लोग दिखाई भी नही दे रहे हो! मेरे सामने प्रकट होते क्यों नही?”
जैसे ही पुजारी ने ऐसा कहा सभी पूजा की सामग्रियां मानवीय रूप में वहाँ प्रकट हो गए।इनके मानवीय रुप में प्रकट होने से पुजारी जी सकपका गये।
ऐसा अद्भुत रूप को देखकर पुजारी जी के मन में नाना प्रकार के प्रश्न उठने लगे।और फिर थरथराते हुए पूछा- “कहिए भाइयों माजरा क्या है? आप लोगों का यह आपसी बर्ताव लड़ाई-झगड़ा देखकर मुझे कुछ गड़बड़ लग रहा है।इतना कहना ही था कि ये शुरु हो गये।”
इनके आपसी शोरगुल और खींचतान से जो खिज भरी आवाजें छन कर आ रही थी,वह कुछ इस प्रकार से थी-
कोई कह रह था-“मै सर्वश्रेष्ठ!”
कोई कह रहा था-“मै अनमोल!”
तो कोई-“मै कीमती!”
तो कोई- “मै अनमोल!”
तो कोई- “मै महान!”
तो कोई मै-“मेरे बिना पूजा अधूरा और सुना!”
तो कोई-“मेरी अहमियत सबसे ज्यादा!!”
इतना सब सुन-सुन के पुजारी कंझा गया।उसके कान
शोरगुल से भर गया फिर उसने खिजते हुए कहा-
“सब शान्त और !चुप भी हो जाओ भाईयों !!
एक बार फिर गर्भ गृह में सन्नाटा छा जाता है।
पुनः पुजारी कहता है-
“कोई मुझे साफ-साफ बताने का कष्ट करेगा,
कि आखिर बात क्या है?”
इस समय सभी की बोलती बंद हो गई थी।
कुछ समय पश्चात अगरबत्ती बोलती है-
“देखिए पुजारी जी मै हमेशा जल-जलकर पीड़ा सहते हुए वातवरण को महकाती हूँ,अर्थात मै ही श्रेष्ठ हूँ।”
फिर इसी समय तपाक से धुप भी बोल पड़ा-
“श्रेष्ठ मैं हूँ, मुझे भी पीड़ा होती है,क्योंकि मैं तो एक साथ आग में डाल दिया जाता हूँ,ताकि आसपास को महका सकूं।”
इसके बाद चंदन भी पीछे कहाँ रहने वाला था बोल पड़ा-“इन लोगों से मैं श्रेष्ठ हूँ क्योंकि मैं बार-बार घिसा जाता हूँ पीड़ा मै भी सहता हूँ।मैं माथे का शोभा बनता हूँ।फिर घंटी भी उछल के बोल पड़ी-“श्रेष्ठ मैं हूँ क्योंकि मैं अपने आप से टकराती हूँ,मुझे भी दर्द होता है,और मैं ही जड़-चेतन जागृत करती हूँ। इसके बाद फूलों से
रहा नही गया,और एक फूल कहता-“पुजारी जी पीड़ा
हम भी कोई कम नही सहते!देखिए न हमे बागों
से तोड़ लिया जाता है,और फिर प्रतिदिन पुष्पहार बनने के लिए सुई से बार-बार चुभना पड़ता है,इसके बाद भी हम अपनी सुषमा और शोभा प्रदान करते हैं।
अर्थात हम फूल ही श्रेष्ठ हैं।इन सभी की पीड़ा भरी
बातें सुनकर पुजारी जी आवाक रह गये।
और वह स्त्बध हो गये।और फिर धीमी आवाज में
कहा-“
आप सभी की बातें तर्क संगत है,पर श्रेष्ठ कौन है?
इसका उत्तर मैं नही दे पाऊँगा।”
इतना सुनकर फिर शोरगुल करते सभी ने प्रश्न किया-
“तो इसका उत्तर कौन देगा ?”
तभी पुजारी जी ने कहा-
“स्वयं भगवाना देंगे!!”
और फिर पुजारी जी हाथ जोड़कर भगवान को
समरण किया-
“हे भगवन आज मै धर्मशंकट में हूँ,इस धर्म शंकट से
मुझे मुक्ति दिलाईए!”
और फिर उसी समय एक बिजली कौंधती है,गर्भ गृह
प्रकाशित हो जाता है और स्वयं भगवान प्रकट हो
जाते हैं।और गंभीर ध्वनि गूंज जाती है।
कहिये पुजारी जी हमें कैसे याद किया ?
पुजारी जी भगवान के चरणों मे दंडवत हो सारा
वृतान्त कह सुनाये।इतना सुनने के बाद भगवान
मुस्कुराते हुए कहते हैं-
“मेरे सहयोगी साथियों श्रेष्ठ कौन है? इसका उत्तर बताऊँ इसके पहले मै भी अपनी पीड़ा व्यक्त करना
चाहता हूँ यदि आप लोग अवसर दें तो!!”
सभी आश्चर्य चकित हो एक दूसरे को देखते
लगे और बोल पड़े-“
“भगवान!भला आपको किस बात की पीड़ा??”
पर! जब आप कह रहे हैं अवसर देने का तो
जरुर!जरूर! कहिए न। भगवन!?
साथियों मेरी पीड़ा यह है कि मैने भी छैनी और हथौड़े
की खुब चोटें सही है।इतना सुनना क्या था सभी सामग्रियां आश्चर्य चकित हो गये।
इधर पुनः भगवान अपनी व्यथा सुनाने लगे
उन्होंने आगे कहा-“मैने भी खूब पीड़ा सही है,पर मै तो
कभी अपने आपको श्रेष्ट बताने की कोशिश नही किया। हां इतना जरूर है मै सम्मानीत हो गया,
अनघड़ पत्थर से भगवान की मूर्ति बन गया।पुरी दुनिया पूजने लगी।मैने तो कभी अपने आपको श्रेष्ठ नही माना।न कभी श्रेष्ठ हूँ।
रही बात श्रेष्ठता की,जिसके बारे आप लोग उत्तर जानना चाहते हैं!तो सुनो-
“श्रेष्ठ कोई एक नही है आप सभी श्रेष्ठ हो।सृष्टि के संचालन में किसी एक का ही योगदान नही रहता। इसमे सभी का योगदान होता है।हम सभी एक दूसरे के अनुपूरक हैं।एक दूसरे के बिना हम सभी अधूरे है।
इतना सुनने के बाद सभी सामग्रियों को बात समझ में आ गई,और भगवान के तर्क संगत उत्तर से प्रसन्न हो
गये।इधर पुजारी जी भी धर्म संकट से मुक्त हुए।और उसी समय पुरा गर्भ गृह भगवान के जयकारे से गूंज उठा।
— अशोक पटेल “आशु”
पूजन सामग्री का मानवीकरण करते हुए श्रेष्ठता की अनौखी कसौटी प्रस्तुत करने के लिए साधुवाद!