मुक्तक/दोहा

मोसे छल किये जाये

छला तुमने हमारा दिल, मदन तुम हो बड़े छली।
हमारा मन क्या उपवन है, बने फिरते हो तुम अलि।
जहाँ पाते हो तुम खुशबू चले जाते हो मँडराते
सुमन को पार्श्व में भरने चले जाते हो उस गली।

मँडराना बाग में तेरा, जहाँ देखे कोई कली।
कहीं जूही कहीं चम्पा कहीं बेली कहीं लिली
मुझे भाये नहीं तेरा फिसलना हर फूलों पर
कदर तुमको नहीं मेरा मैं जो तुमको हूँ मिली।

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]