तुम बिन सूना मधुमास
पिछले दिनों युवा कवयित्री सुमन लता जी का काव्य संग्रह ‘तुम बिन सूना मधुमास’ प्राप्त हुआ। स्वास्थ्य कारणों से चाहकर भी अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाया। अब आज जब लिखने की कोशिश कर रहा हूंँ तब सबसे सुखद तो यह महसूस हो रहा है कि विशुद्ध घरेलू महिला में अपनी अभिव्यक्ति का कितना जूनून है। हम सभी जानते हैं कि एक महिला को अपनी रोजमर्रा की जिम्मेदारियों के साथ अपने भीतर की छिपी प्रतिभा को साकार करने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।यह अलग बात है कि पति, पिता और परिवार का साथ, संबल मिले तो राहें थोड़ी आसान हो जाती हैं। बस…. इससे अधिक कुछ नहीं। यूँ तो सुमन को विभिन्न आभासी मंचों पर पढ़ने का अवसर मिलता रहता है। उनकी सहजता सरलता से नि:संदेह प्रभावित हूँ, वरन उनके पैने दृष्टिकोण का भी प्रशंसक भी हूँ। इतने कम उम्र में तीन- तीन संग्रह प्रकाशन के स्तर तक ले जाना आसान नहीं होता, वो भीकिसी मध्यमवर्गीय परिवार, ऊपर से महिला के लिए तो और भी नहीं। फिर भी सुमन जी ने इस स्तर तक खुद को पहुँचाया। निश्चित ही वे बधाई की हकदार हैं। संग्रह का अवलोकन करने पर महसूस होता है कि कवयित्री के रूप में सुमन अपने आसपास पैनी नजर रखते हुए जो महसूस करती हैं, उसी से प्रभावित होकर कविता के रूप में शब्दों को पिरोती रहती हैं। चाहे प्राकृतिक सौंदर्य हो, राष्ट्रप्रेम/ देशभक्ति हो, जाति /धर्म, सामाजिक हिंसा या सामाजिक विसंगति या बुराइयां हों। युद्ध की विभीषिका से बेचैन दिखती हैं। नारी शक्ति को किसी से कम न मानने वाली सुमन ने संग्रह में अपनी विविध रचनाओं के माध्यम से उन्होंने अपने बहुआयामी दृष्टिकोण और चिंतन का उदाहरण पेश किया है। चाहे पर्यावरण संरक्षण की बात हो या पानी बचाने का संदेश देने का दायित्व निभाने की कोशिश करते हुए मन के भावों का शब्द चित्र खींचने की सुंदर सार्थक कोशिश की है। मन की बात में कवयित्री अपने बारे में कहती हैं कि शैक्षणिक यात्रा में और आगे न बढ़ पाने का खेद हमेशा रहा है। लेकिन माँ शारदे की उन पर बरसती कृपा के फलस्वरूप उनमें कुछ नया करने का जज्बा हमेशा से रहा और भगवान ने भी साथ दिया, जो कुछ ऐसे मित्र मिले, जिन्होंने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया । परिवार और मित्रों का सहयोग, संबल का ही परिणाम प्रस्तुत काव्य संग्रह के रूप में सामने है। संग्रह की लगभग सभी रचनाएँ सहज गेयता के विभिन्न छंदों के रूप में हैं। माँ शारदे की वंदना में माँ से विनय करते हुए सुमन कहती हैं -नित शीश झुकाऊँ, वंदन गाऊँ, ऐसा देना, वर मैया,है रीती गागर, कर दो सागर, पार लगा दो, अब नैया।गुरु नमन में वे लिखती हैं -हे गुरुदेव दया के सागर,नमन हमारा हो स्वीकार,देकर ज्ञान हमें से गुरुवर, किया बहुत हम पर उपकार।शिव आराधना में वे भोलेनाथ से चाहती हैं -भक्ति-भाव से पावन मन हो, देव भजन का हो बस काम,मन की दुविधा दूर करो सब, नित चरणों में करूँ प्रणाम।मन के भाव की दो पंक्तियां उनके मन की भावना का उत्कृष्ट उदाहरण पेश करते हैं -कभी प्रेम की बातें लिखती,कभी- कभी लिखती तकरार,डूब नशे में कैसे मानव, कर लेता जीवन बेकार।युद्ध की विभीषिका से विचलित सुमन हालात का रेखाचित्र खींचने की कोशिश करते हुए लिखती हैं -जन- जन के हालात बुरे हैं, तरसे दाना पानी को,कोई ढूँढे मात- पिता को, कोई बिटिया रानी को।चीख रहे सब बेबस होकर, ठौर नहीं दिखती कोई,जिसने देखा हाल बुरा ये, वो आँखें कब हैं सोई।समय की महत्ता समझाते हुए बड़े सहज अंदाज में सुमन लिखती हैं -समय बीत जाने परहाथ मलते रहेंगे,बैठे -बैठे साथ फिरझुनझुना बनायेंगे।सुभाष चंद्र बोस जी को याद करते हुए सुमन की पंक्तियां झकझोरती हैं -आ जाओ फिर से नेता जी, खतरे में आजादी है,घर के ही घर लूट रहे हैं, खतरे में शहजादी है।गणतंत्र दिवस में कवयित्री कहती है-बड़ी एकता देश में है दिखाओ,करें भारती को नमन आज आओ।नशे के प्रति मनमानी पर कवयित्री उलाहना देते हुए कहती है-जो बीत गया अब याद, उसी की आई।सब चर्चा है बेकार, न हो भरपाई।माँ की ममता की याद दिलाते हुए कहती हैं -माँ भूली अपना चैन, नींद भी खोई,तू जब-जब रोया साथ, सदा मां रोई।इसके अलावा हरगीतिका छंद, मालती सवैया, दुर्मिल सवैया, मुक्तक के अलावा गीत संगीत, मासूम बेटी, द्वेष न पालो, द्रौपदी, समाधान, बना दो बिगड़े काम, पानी नहीं बहाना, चमत्कार, मुनिया, सपना, पतझड़ सहित 74 रचनाएं संग्रह में हैं। संक्षेप में कहा जाय तो सरल, सहज और आम जनमानस की समझ में आने के साथ प्रभावित करने वाली रचनाओं से सुसज्जित संग्रह की सफलता की उम्मीद जगाने के साथ सुमन के उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य का संकेत भी दे रहा। सुकीर्ति प्रकाशन कैथल(हरियाणा) द्वारा प्रकाशित और नाम के अनुरूप मुखपृष्ठ वाले संग्रह ‘ तुम बिन सूना मधुमास ‘की सफलता और कवयित्री सुमन लता के उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ अशेष शुभकामनाएं……।
पिछले दिनों युवा कवयित्री सुमन लता जी का काव्य संग्रह ‘तुम बिन सूना मधुमास’ प्राप्त हुआ। स्वास्थ्य कारणों से चाहकर भी अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाया। अब आज जब लिखने की कोशिश कर रहा हूंँ तब सबसे सुखद तो यह महसूस हो रहा है कि विशुद्ध घरेलू महिला में अपनी अभिव्यक्ति का कितना जूनून है। हम सभी जानते हैं कि एक महिला को अपनी रोजमर्रा की जिम्मेदारियों के साथ अपने भीतर की छिपी प्रतिभा को साकार करने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।यह अलग बात है कि पति, पिता और परिवार का साथ, संबल मिले तो राहें थोड़ी आसान हो जाती हैं। बस…. इससे अधिक कुछ नहीं।
यूँ तो सुमन को विभिन्न आभासी मंचों पर पढ़ने का अवसर मिलता रहता है। उनकी सहजता सरलता से नि:संदेह प्रभावित हूँ, वरन उनके पैने दृष्टिकोण का भी प्रशंसक भी हूँ। इतने कम उम्र में तीन- तीन संग्रह प्रकाशन के स्तर तक ले जाना आसान नहीं होता, वो भी
किसी मध्यमवर्गीय परिवार, ऊपर से महिला के लिए तो और भी नहीं। फिर भी सुमन जी ने इस स्तर तक खुद को पहुँचाया। निश्चित ही वे बधाई की हकदार हैं।
संग्रह का अवलोकन करने पर महसूस होता है कि कवयित्री के रूप में सुमन अपने आसपास पैनी नजर रखते हुए जो महसूस करती हैं, उसी से प्रभावित होकर कविता के रूप में शब्दों को पिरोती रहती हैं। चाहे प्राकृतिक सौंदर्य हो, राष्ट्रप्रेम/ देशभक्ति हो, जाति /धर्म, सामाजिक हिंसा या सामाजिक विसंगति या बुराइयां हों। युद्ध की विभीषिका से बेचैन दिखती हैं।
नारी शक्ति को किसी से कम न मानने वाली सुमन ने संग्रह में अपनी विविध रचनाओं के माध्यम से उन्होंने अपने बहुआयामी दृष्टिकोण और चिंतन का उदाहरण पेश किया है। चाहे पर्यावरण संरक्षण की बात हो या पानी बचाने का संदेश देने का दायित्व निभाने की कोशिश करते हुए मन के भावों का शब्द चित्र खींचने की सुंदर सार्थक कोशिश की है।
मन की बात में कवयित्री अपने बारे में कहती हैं कि शैक्षणिक यात्रा में और आगे न बढ़ पाने का खेद हमेशा रहा है। लेकिन माँ शारदे की उन पर बरसती कृपा के फलस्वरूप उनमें कुछ नया करने का जज्बा हमेशा से रहा और भगवान ने भी साथ दिया, जो कुछ ऐसे मित्र मिले, जिन्होंने मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया । परिवार और मित्रों का सहयोग, संबल का ही परिणाम प्रस्तुत काव्य संग्रह के रूप में सामने है।
संग्रह की लगभग सभी रचनाएँ सहज गेयता के विभिन्न छंदों के रूप में हैं। माँ शारदे की वंदना में माँ से विनय करते हुए सुमन कहती हैं –
नित शीश झुकाऊँ, वंदन गाऊँ, ऐसा देना, वर मैया,
है रीती गागर, कर दो सागर, पार लगा दो, अब नैया।
गुरु नमन में वे लिखती हैं –
हे गुरुदेव दया के सागर,नमन हमारा हो स्वीकार,
देकर ज्ञान हमें से गुरुवर, किया बहुत हम पर उपकार।
शिव आराधना में वे भोलेनाथ से चाहती हैं –
भक्ति-भाव से पावन मन हो, देव भजन का हो बस काम,
मन की दुविधा दूर करो सब, नित चरणों में करूँ प्रणाम।
मन के भाव की दो पंक्तियां उनके मन की भावना का उत्कृष्ट उदाहरण पेश करते हैं –
कभी प्रेम की बातें लिखती,कभी- कभी लिखती तकरार,
डूब नशे में कैसे मानव, कर लेता जीवन बेकार।
युद्ध की विभीषिका से विचलित सुमन हालात का रेखाचित्र खींचने की कोशिश करते हुए लिखती हैं –
जन- जन के हालात बुरे हैं, तरसे दाना पानी को,
कोई ढूँढे मात- पिता को, कोई बिटिया रानी को।
चीख रहे सब बेबस होकर, ठौर नहीं दिखती कोई,
जिसने देखा हाल बुरा ये, वो आँखें कब हैं सोई।
समय की महत्ता समझाते हुए बड़े सहज अंदाज में सुमन लिखती हैं –
समय बीत जाने पर
हाथ मलते रहेंगे,
बैठे -बैठे साथ फिर
झुनझुना बनायेंगे।
सुभाष चंद्र बोस जी को याद करते हुए सुमन की पंक्तियां झकझोरती हैं –
आ जाओ फिर से नेता जी, खतरे में आजादी है,
घर के ही घर लूट रहे हैं, खतरे में शहजादी है।
गणतंत्र दिवस में कवयित्री कहती है-
बड़ी एकता देश में है दिखाओ,
करें भारती को नमन आज आओ।
नशे के प्रति मनमानी पर कवयित्री उलाहना देते हुए कहती है-
जो बीत गया अब याद, उसी की आई।
सब चर्चा है बेकार, न हो भरपाई।
माँ की ममता की याद दिलाते हुए कहती हैं –
माँ भूली अपना चैन, नींद भी खोई,
तू जब-जब रोया साथ, सदा मां रोई।
इसके अलावा हरगीतिका छंद, मालती सवैया, दुर्मिल सवैया, मुक्तक के अलावा गीत संगीत, मासूम बेटी, द्वेष न पालो, द्रौपदी, समाधान, बना दो बिगड़े काम, पानी नहीं बहाना, चमत्कार, मुनिया, सपना, पतझड़ सहित 74 रचनाएं संग्रह में हैं।
संक्षेप में कहा जाय तो सरल, सहज और आम जनमानस की समझ में आने के साथ प्रभावित करने वाली रचनाओं से सुसज्जित संग्रह की सफलता की उम्मीद जगाने के साथ सुमन के उज्ज्वल साहित्यिक भविष्य का संकेत भी दे रहा।
सुकीर्ति प्रकाशन कैथल(हरियाणा) द्वारा प्रकाशित और नाम के अनुरूप मुखपृष्ठ वाले संग्रह ‘ तुम बिन सूना मधुमास ‘की सफलता और कवयित्री सुमन लता के उज्ज्वल भविष्य की कामना के साथ अशेष शुभकामनाएं……।