कविता

कविता – नाराज़गी की उम्र

नाराज़गी के खेल में परहेज़ रहे,
उम्र इसकी लम्बी न हो।
मौतें कब आ जाएगी,
इस बात का इल्म रहे।

इस दरम्यान हमें औरों का,
यहां अहसास दिखे।
मुश्किल वक्त में अपने ही,
सब अपने- पराए आसपास दिखें।

इस मंजर को याद कर,
नाराज़गी ज़ाहिर न हो।
मौत कब आ जाएगी,
इस कारण कुछ तो नजरंदाज करे।

नाराज़गी ज़ाहिर है तो,
जिंदगी की खुशियां खत्म हो जाती है।
सफ़र इधर-उधर रहने पर,
उम्मीदों पर पानी फिरने की,
माहौल बन जाती है।

मरना -जीना तो बस एक दस्तूर है,
कहां है इसपर ज़ोर किसी का यहां।
तनहा मेरी हो या लोगों की,
सबमें बस एक ही रंग दिखता है वहां।

हरेक मोड़ पर आकर रुक जाना,
आगे बढ़ने में तरोताजा महसूस कराती है।
उम्मीद बनाएं रखने में,
एक मजबूत साथी बनकर,
बड़ी हौसला बढाती है।

चन्द दिनों की खुशियां,
यूं ही न बिखेर सकते हैं हम।
यही दरियादिली दिखाई देती है,
सबको तो दुनिया से जाना है एक दिन,
तो फिर क्यों इतनी जद्दोजहद,
हम सब करते यहां हम।

— डॉ. अशोक, पटना

डॉ. अशोक कुमार शर्मा

पिता: स्व ० यू ०आर० शर्मा माता: स्व ० सहोदर देवी जन्म तिथि: ०७.०५.१९६० जन्मस्थान: जमशेदपुर शिक्षा: पीएचडी सम्प्रति: सेवानिवृत्त पदाधिकारी प्रकाशित कृतियां: क्षितिज - लघुकथा संग्रह, गुलदस्ता - लघुकथा संग्रह, गुलमोहर - लघुकथा संग्रह, शेफालिका - लघुकथा संग्रह, रजनीगंधा - लघुकथा संग्रह कालमेघ - लघुकथा संग्रह कुमुदिनी - लघुकथा संग्रह [ अन्तिम चरण में ] पक्षियों की एकता की शक्ति - बाल कहानी, चिंटू लोमड़ी की चालाकी - बाल कहानी, रियान कौआ की झूठी चाल - बाल कहानी, खरगोश की बुद्धिमत्ता ने शेर को सीख दी , बाल लघुकथाएं, सम्मान और पुरस्कार: काव्य गौरव सम्मान, साहित्य सेवा सम्मान, कविवर गोपाल सिंह नेपाली काव्य शिरोमणि अवार्ड, पत्राचार सम्पूर्ण: ४०१, ओम् निलय एपार्टमेंट, खेतान लेन, वेस्ट बोरिंग केनाल रोड, पटना -८००००१, बिहार। दूरभाष: ०६१२-२५५७३४७ ९००६२३८७७७ ईमेल - [email protected]