कविता

लोक कलाकारों को दे दो सम्मान

लोक संस्कृति को बचाने के लिए ज़िन्दगी
दाव पर लगा देते हैं असली लोक कलाकार
जिन्हें लोक संस्कृति से नहीं कोई मतलब
वही बाहरी कूटते हैं पैसा और हो जाते हैं फरार

किसी का चुराया गाना
धुन किसी की चुराई
इधर उधर से जोड़े गाने के तार
अपनी वाहवाही करवाई

कैसे बचेगी लोक संस्कृति
जब रहा नहीं किसी को प्यार
न अपनी बोली से रहा कोई मतलब
न रहा अपनापन बदल गया व्यवहार

पाश्चात्य सभ्यता में रंग गए सभी
लुप्त हो गए लोकगीत और गीतकार
वाद्य यंत्र पुराने अब बन्द हैं पड़े
निकलती थी तरंगे टूटे पड़े है अब वह तार

जब तक लोक कलाकारों को नहीं मिलेगा सम्मान
मौका नहीं देंगे तो कैसे बनेगी उनकी पहचान
परों को तो खोल कर देखो उनके एक बार
ऐसी उड़ान होगी कि मुट्ठी में होगा आसमान

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र

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