गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

कुछ नया थोड़ा पुराना जिन्दगी में आजकल।
याद कर पिछला ज़माना जिन्दगी में आजकल।
साजिशें ऐसी सदी आ जाये वापस पांचवीं,
लिख रहे फिर से फ़साना जिन्दगी में आजकल।
फूल की खुशबू हवा के एक झोंके संग आयी,
महकती वन वाटिका है जिन्दगी में आजकल।
एक नन्ही बूंद आखिर प्यास को कैसे बुझाये,
इक समंदर सी तृषा है जिन्दगी में आजकल।
यात्रा इतनी बड़ी आखिर पार कैसे पाये कोई,
एक तन्हा सा सफर है जिन्दगी में आजकल।

— वाई.वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890

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