कविता

मौन

कभी सौ किताबों में है मौन केवल,
कभी मौन में सौ किताबें छुपी हैं।
अगर डूब जाओगे दिल में किसी के
तभी पाओगे कितनी आहें छुपी हैं।।

हृदय के ककहरे को बांचा किसी ने,
किसी ने ककहरे में खोजा हृदय को।
भरी भावना जिस तरह जिस किसी में,
वही देखता हर सृजन में, प्रलय में।।

गरीबों को दिखती है चंदा में रोटी,
व रोटी में चंदा धनी देखते हैं।
कहानी अलग है बहुत इस जहां में,
ये बेटी लहू में सनी देखते हैं।।

लुटेरे नहीं हैं बहुत इस धरा पर,
न पापी अधर्मी से दुनिया भरी है।
समस्या बड़ी है शरीफों की चुप्पी,
इन्हीं कारणों से शराफ़त डरी है।।

शरीफों से कह दो उठें, मौन तोड़ें,
नहीं तो अधर्मी की ताकत बढ़ेगी।
छुरी के हवाले अगर सिर करोगे,
शराफ़त रसातल पहुंचकर रहेगी।।

चलो एक सूरज जमीं पर उगाएं,
कहीं रह न जाए किसी घर अंधेरा।
बंटे दाल – रोटी, बंटे भात – भांजी,
सभी के लिए भोर -लाली- सवेरा।।

— डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन

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