कहानी

हास्य कहानी – प्राइवेट बीवी    

 चार दिनों से मैं भारत दूर संचार निगम लिमिटेड के आफिस का चक्कर लगा लगा कर थक चुका था। आज पांचवा दिन था। अब खुद मुझे चक्कर आने लगा था । मेरा बैंकिंग, नेटवर्किंग और ईमेल का सारा काम रूक गया था। ऊपर से पिछले पांच  दिनों से आफिस बुला बुला कर उसने मेरे दिमाग का दही बना रखा था। मैनें तय कर लिया था कि आज के बाद उस आफिस में फिर कभी कदम नहीं रखूगा।  अजीब घन चक्कर में मैं फंस गया था। मेरी हालत कमोबेश उस मदारी की तरह हो गयी थी।  नाच की करतब दिखाते दिखाते जिसकी बंदरिया किसी बंदर के साथ भाग गयी हो। और  जमीन पर बैठा मदारी  डंडा पिटता रह गया हो। 

  पिछले ही माह बडे़ शौक से मैने अपना एक सिम का  ” बी एस एन एल ” में पोर्ट कराया था। जैसे आज के युवा अपनी पुरानी गर्ल फ्रेंड को छोड़ बडे़ शौक से नई गर्ल फ्रेंड के साथ शादी कर लेते हैं। कहा जाता है  शादी की लडू और पडोस की बीवी हर किसी को लुभाती है। मैं भी बहुत  खुश था। मेरे दिल में भी लड्डू फूट रहे थे। पर हाय री किस्मत  ! सर मुडाते ओले पडे  जैसी हालत हो गई मेरी।

एक दिन बाजार में मेरा मोबाइल गुम हो गया। जैसे सोनपुर  मेले में कभी कभी बीवियां गुम हो जाती हैं। लुटे पिटे हालत में फिर भी बीवियाँ  मिल जाती हैं। लेकिन  गुम हुआ मोबाइल का मिलना समुंदर के बीच से मोती खोज निकालने के बराबर था। मोबाइल में दो सिम कार्ड लगे हुए थे। एक जियो का और दूसरा था  ” बी एस एन एल ” का। काफ़ी खोज बीन हुआ। पर न मोबाइल मिला और न कोई सुराग़। हाथ मलता हुआ मैं नजदीकी थाने में पहुँचा। पूरा का पूरा वाकया एक कागज़ पर उतारा और थाने के बड़ा बाबू के पास जा पहुँचा। सनाहा दर्ज करने हेतु आग्रह किया ‌। 

” दो दिन बाद आकर रिसिव ले लेना ” उधर से कहा गया । 

” सर, आज नहीं होगा ? “

” यह ब्लॉक नहीं है, कुछ ले देकर हो जायेगा सोच  रहे हो, यह थाना है थाना.. जाओ..! ” खड़े खड़े बड़ा बाबू ने झाड दिया। 

क्षुब्ध मन लिए मैं चला आया था। 

औरत बिना पुरुष कुछ दिन पडोसन से हंस बोल गुजारा कर भी लेगा। लेकिन मोबाइल बिना उसकी नींद नहीं आयेंगी। मोबाइल अपना ही अच्छा लगता है, पडोसन की नहीं। उस रात मेरी भी नींद आंखों में कटी। रात भर बुरे बुरे सपने आते रहे। 

अगले ही दिन सुबह सीधे जियो आफिस जा पहुंचा। गार्ड ने गेट खोला। अंदर एक सुंदर सी कन्या ने स्वागत करते हुए कहा ” आइए सर! क्या काम है? ” 

” मेरा मोबाइल गुम हो गया है, मुझे फिर से वही नम्बर चाहिए..। “

” रिप्लेस का मामला…! ” लड़की ने  कलिग लडके की तरफ देखा। 

” सिम तुरंत चालू हो जायेगा..आप दस मिनट समय दीजिये, मोबाइल लाए है !” काउंटर में खड़े उस लडके ने पूछा। 

” लाया नहीं है, पर अभी खरीद लूंगा..! “

 मोबाइल सेट झट उसी आफिस से खरीद ली मैने। दस  मिनट तक वही लडका जाने कहां गिटिर पिटिर करता रहा, फिर एक सिम कार्ड उसने मोबाइल में डाला फिर मुझसे बोला ” आपका सिम चालू हो गया है, सर ! अब आप  बात कर सकते है।” 

 पहला फोन मैंने बेटे को किया और  ” सावधानी से मोबाइल रखना ”  कह दिया। 

  दूसरे दिन मैं भारत दूर संचार निगम लिमिटेड के आफिस में पहुंचा । दो चार लोग पहले से वहाँ मौजूद थे। मैंने अपनी बात उसी भीड़ में घूसेड़ दी ” मेरा मोबाइल गुम हो गया है,। पर मुझे वही नम्बर चाहिए प्लीज..।” 

जवाब उसी रूप में मिला ” थाने में दर्ज रिपोर्ट काॅपी, आधार कार्ड, वोटर कार्ड और एक फोटो कल लेते आइए । “

” इतने सारे कागज  ? ” 

” भाई, ऐसा है न, यह सरकारी संस्था है, कोई प्राइवेट मुर्गी फार्म नहीं  ! “

” ठीक है महाशय, समझ गया, यह सरकारी संस्था है, कोई ठरकी संस्था नहीं। सभी पेपर लेकर आता हूँ । “

   मैं सीधे थाने पहुंचा।  बडा़ बाबू कहीं निकल रहे थे। प्रणाम किया और मोबाइल गुम की बात कही तो उन्हें स्मरण हो आया । खड़े खड़े उन्होंने आवाज दी ” सुनो, इसकी रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है, दराज़ में फाइल है, रिसिव कॉपी  दे दो.. ‌” और वो जीप में जा बैठे थे। 

दूसरे दिन भारत दूर संचार निगम लिमिटेड के आफिस में फिर जा पहुंचा। आफिस कर्मचारी को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि  उसके कहे कागजातों के साथ उसका तबला बजाने मैं हाजिर हो जाऊंगा।  आश्चर्य भाव से उसने मुझे देखा। फिर पेपर देखने के बाद अपने काम पर लग गया। बीच बीच में गायत्री मंत्र की तरह जाने क्या जपता रहा -” सरवर डोन..इ.र.र, सरवर डोन.. इरर..! ” इसी बीच उसने दो बार मेरा फोटो भी लिया। लेकिन खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली चरितार्थ  ! आधा घंटा बीत गया। काम नहीं हुआ। सडा आलू की तरह उसके मुंह से बात निकली ” भाई साहब, आज आपका काम नहीं हो सकेगा। सरवर डोन है, इरर के कारण काम नहीं हो रहा है । कल साढ़े दस बजे आइए..काम कर देंगे । “

आफिस से बाहर निकला तो पीछे  से एक आदमी ने कहा ” क्या लगता है, कल आपका काम हो जायेगा..? “

” बोला तो है..! “

” आज मेरा चौथा दिन है, इसी काम के लिए घूम रहा हूँ..! “उसने कहा और आगे बढ़ गया। 

अगले दिन मैं आधा घंटा लेट से पहुंचा। अपने आफिस में कुछ जरूरी काम  करने थे। जब से इस आफिस का चक्कर लगाना शुरू किया था। ‌। अपने आफिस के कई काम पेंडिंग पड़ गये  थे जिन्हें करना भी जरूरी था । 

” आज आप आधा घंटा लेट हो गये। इन दोनों का काम हो जाने के बाद ही आपका काम होगा…। ” मुझे देखते ही उसने कहा था। 

” ठीक है..। ”   मैंने कहा और एक खाली कुर्सी  पर बैठ एक लंबी सांस ली और उस मनहूस घड़ी और उस मादरज़ात को कोसने लगा जिसने यह दिन दिखाई। तभी मेरे काम का नम्बर आया। फिर वही प्रक्रिया, नम्बर, फोटो.. टिप टाप, गिटिर पिटिर..! 

” लो आपका भी काम हो गया..! ” अंत में उसने कहा ” सौ रूपये दीजिये और यह सिम लगा लीजिए..। “

“सर, आप ही लगा दीजिये न..। “

” यह काम मेरा नहीं है, किसी से लगवा लीजिए.. ‌”

” यहां कौन लगा देगा, मुझे लगाना नहीं आता है..! “”

” मुझे भी नहीं आता है..! “

” इस रूखेपन की वजह..? “

” कोई वजह नहीं, शाम तक सिम चालू हो जायेगा..यह नम्बर रख लीजिए ! ” कह वह दूसरे कमरे में चला गया था । वहां अब रूकने की कोई वजह तो थी नहीं। मैंने भी आफिस को प्रणाम किया और चल दिया ।

 अब मैं  बेसब्री से  शाम का इंतजार करने लगा । क्या कहूं शाम तक बड़ी बेताब रहा मैं । 

इस सिम और नम्बर को लेकर मैं कई रातें ठीक से सोया नहीं था । मन में कितने तरह के बुरे बुरे ख्याल आते रहे। बैंकिंग, आनलाइन, गुगल और पे फोन, सभी इसी नम्बर से कनेक्ट था । साईबर क्राइम से दुनिया त्रस्त है,यह कौन नहीं जानता है। आज हर आदमी की मूडी सियार की तरह मोबाइल में फंसा हुआ है और उनकी अंडरवियर और साड़ी भी आधार की तरह मोबाइल से कनेक्ट है। आज आजाद आदमी  मोबाइल का गुलाम बन चुका है। मैं बडी़ शिद्दत से यह सब महसूस करता रहा । 

  शाम तक सिम चालू नहीं हुआ। मैं धैर्य बनाये रखा। रात हो गयी। लेकिन फिर भी सिम चालू नहीं हुआ। धैर्य भी नहीं रहा। उन्हें फोन लगाया। जवाब मिला ” कुछ त्रुटि हो गई है, कल आपको फिर से आफिस आना होगा..! “

” अब्बे..! “गाली देनी चाही। लेकिन दी नहीं। सोचने लगा ” उसे गाली देकर क्या होगा  ? एक नम्बर  या  सिम नहीं, यहां तो पूरा का पूरा सिस्टम करप्ट हो चुका है। और यह गाली देने या थाली पिटने से खत्म नहीं होगा। इसके लिए एक नई सोच विकसित करनी होगी, युवाओं को अपने जमीर को जगाना होगा। जो इस अंधभक्त राष्ट्र में अभी दूर दूर तक नज़र नहीं आता। ” 

 मैं बहुत बड़ी उलझन में फंस गया था। समझ में नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूँ  ? नम्बर छोड़ नहीं सकता, इसे रखना मेरी मजबूरी बन चुकी थी और रिश्वत दे नहीं सकता यह मेरे सिद्धांत  के खिलाफ था। 

—  श्यामल बिहारी महतो

*श्यामल बिहारी महतो

जन्म: पन्द्रह फरवरी उन्नीस सौ उन्हतर मुंगो ग्राम में बोकारो जिला झारखंड में शिक्षा:स्नातक प्रकाशन: बहेलियों के बीच कहानी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा अन्य दो कहानी संग्रह बिजनेस और लतखोर प्रकाशित और कोयला का फूल उपन्यास प्रकाशित पांचवीं प्रेस में संप्रति: तारमी कोलियरी सीसीएल में कार्मिक विभाग में वरीय लिपिक स्पेशल ग्रेड पद पर कार्यरत और मजदूर यूनियन में सक्रिय

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