जहां बाड़ ही खेत को खाने लगे
किसी और से करें क्या उम्मीद
जब रक्षक ही भक्षक बन जाये
वह खेत कहां सुरक्षित रहेगा
जहां बाड़ ही खेत को खा जाये
जब खाखी ही बेचने लगे चिट्टा
युवाओं का भविष्य करने लगे बर्बाद
कैसे होगा सुधार कैसे सुधरेंगे हालात
बजाय सुधरने के बिगड़ जाएगा समाज
यदि खाखी चाहे तो दो दिन में हो जाये सुधार
लेकिन खाखी ही खाखी को कर रही शर्मशार
कानून के रखवाले डराते हैं धौंस जमाते हैं
कई बार तो करते हैं गरीब की इज़्ज़त पर वार
आजकल चिट्टे की गिरफ्त में हो गया है ज़माना
क्या बच्चे क्या बूढ़े क्या मर्द क्या जनाना
युवा पीढ़ी धंसती जा रही नशे के दलदल में
सभी को सोचना पड़ेगा कैसे है इनको बचाना
कौन चोरी करता है कौन चिट्टा बेचता और खा रहा है
खबर इनको सब होती है कहां क्या हो रहा है
अनजान बने रहते हैं आंख मूंद कर निकल जाते हैं
पता सब होता है इनको कौन कहां क्या बो रहा है
दीमक एक बार जो जड़ों में लग गई
वह पेड़ ज़्यादा समय तक टिक नहीं पायेगा
समय रहते कर लीजिए इस चिट्टे रूपी दीमक का इलाज
बचोगे नहीं जब पानी सिर से ऊपर चढ़ जाएगा
— रवींद्र कुमार शर्मा