कहें सुधीर कविराय
दोहा -कहें सुधीर कविराय
धार्मिक
नमन करूँ माँ शारदे, आप करो स्वीकार।
शीश झुका विनती करूँ, कर दो मम उद्धार।।
हनुमत जी करिए कृपा, निज भक्तों पर आप।
जो करते प्रभु राम के, नामामृत आलाप।।
सतगुरु हो मम शीश पर ,सदा आपका हाथ।
इतनी सी बस हो कृपा, रहिए मेरे साथ।।
विविध
चिंता में मैं हूँ बड़ी, मुझे बहुत है कष्ट।
सोते में भी सोचता, कौन अधिक पथभ्रष्ट।।
खुशी खुशी कुछ लोग जो, बेच रहे ईमान।
खुशफहमी में जी रहे, बढ़ता उनका मान।।
मरना जीना सत्य है, फिर क्यों करें गुरूर।
जब तक धरती पर रहें, सदा सत्य भरपूर।।
दिवस खास है आज का , मान लीजिए आप।
दूर रहें संताप से, खुशियाँ लीजै छाप।।
कविता पढ़ने के लिए, आमंत्रण इस बार।
संग मंच पर साथ में, कविगण एक हजार।।
अड़ा रहे कुछ लोग हैं, अपनी लँगड़ी टाँग।
जो शायद हैं खा रहे, सुबह सबेरे भाँग।।
एक निवेदन है मेरा, आप करो स्वीकार।
मित्र सभी के साथ ही, रखो प्रेम व्यवहार।।
अहोभाग्य
अहोभाग्य हम आपका, आज अवध में राम।
पाँच दशक का है बड़ा, सबसे उत्तम काम।।
अहोभाग्य है देश का, महाकुंभ का जोर।
उमड़ा जन सैलाब है, संगम तट की ओर।।
गणपति जी की है कृपा, सीख रहा मैं छंद।
अहोभाग्य मम का यही, अब कम होता द्वंद्व।।
अहोभाग्य मेरा रहा, गुरुवर मेरे आप।
तभी आज मैं कर रहा, छंद-छंद का जाप।।
अहोभाग्य उनका बड़ा, मात पिता सिर हाथ।
दुख उनका भी देखिए, असमय हुए अनाथ।।
मान रहे जन मन सभी, रामराज्य का दौर।
जबसे आये राम जी, अहोभाग्य मन ठौर।।
राशि
कुंभ राशि के फेर में, फंसे बहुत से लोग।
जनता कहती गर्व से, महाकुंभ का योग।।
सोच रहे वे क्या करें, गले फंस गया कुंभ।
बेचारे हैरान हैं, जैसे शुंभ निशुंभ।।
शनी देव रक्षा करें, महाकुंभ में ठौर।
जो कहते कुछ और हैं, करते हैं कुछ और।।
स्वामी हैं शनिदेव जी, कुंभ राशि के जान।
स्थिर मन होते लोग ये, आशावादी मान।।
बुद्धिमान होते बड़े, कुंभ राशि के लोग।
लग्न और श्रम के धनी, या माने संयोग।।
राशि वास का छोड़िए, करिए श्रम पुरजोर।
बिन इसके होता नहीं, उत्तम अपना भोर।।
भाग्य राशि के फेर में, फँस जाते जो लोग।
रखें कर्म से फासला, कष्ट रहे हैं भोग।।
सुरसरि
सुरसरि सबकी मातु है, ये है बड़ी पवित्र।
कुछ लोगों को क्यों लगे, ये तो बड़ी विचित्र।।
सुर की सरि कहते इसे, गंगा इसका नाम।
मानव दानव देव भी, करते इसे प्रणाम।।
गंगा जीवन दे रही, मान रहे हम आप।
मैली इसको हम करें, कौन मानता पाप।।
सजायें
मेरा बस अनुरोध है, आप सजायें द्वार।
रखना क्यों है किसी से, रखिए नहीं उधार।।
अब कुटिया अपनी सभी, सजा रहे हैं आज।
प्रभु चित्त अपने बसा, महाकुंभ के साथ।।
मानो सबके मन बसे, कण कण जिनका धाम।
चलो सजायें हम सभी, अपने अपने राम।।
करिए प्रातः वंदना, मातु पिता को नित्य।
खुद से आप सजाइये, खुशियों का आदित्य।।
जिम्मेदारी भआपकी, हो खुश घर परिवार।
सब मिल आयें साथ में, तब सपना साकार।।
संगम
भक्तों का संगम लगे, नित्य अयोध्या धाम।
मान रहें जन मन सभी, बड़ी कृपा है राम।।
महाकुंभ में जब लगी, एक जगह जब आग।
संगम महिमा फेर में, बजे बेसुरे राग।।
संगम में डुबकी लगा, मानव होते धन्य।
पाप सभी के हो रहे, महाकुंभ में क्षम्य।।
गंगा-यमुना पावनी, माथा संगम टेक।
बाकी दिन मैली करें, कूड़ा कर्कट फेक।।
पहले माँगो तुम सभी, माता करिए माफ।
संगम का तब स्नान हो, निज का मन जब साफ़।।
सलोना
रूप सलोना राम का, मंद- मंद मुस्कान।
ऐसे मेरे राम जी, रखते सबका ध्यान।।
श्याम सलोने कृष्ण हैं, लीला करते रोज।
राधा के मन में छिपे, ग्वाले करते खोज।।
बड़ा सलोना लग रहा, मेरा प्यारा लाल।।
मटक-मटक कर नाचता, हँस-हँस बेहाल।
देख सलोना रूप मैं, हुआ बहुत बेचैन।
कटना मुश्किल हो रहा, दिन हो या फिर रैन।।