कविता

व्याप्त हैं

दुष्प्रवृत्तियाँ चारों तरफ़, कौरवों सी व्याप्त हैं,
सत्प्रवृत्तियाँ पाण्डवों सी, यहाँ संघर्षरत हैं।
कुरुक्षेत्र में युद्धरत, निष्काम भाव चिंतन रहे,
द्वन्द्वात्मक जगत से निकलना, अवसर पर्याप्त हैं।
पूछते अर्जुन कृष्ण से, नश्वर क्या क्यों कैसे बना,
नश्वर जगत में क्या कहीं, साकार ईश्वर व्याप्त है?
कर्म की प्रधानता में, बस कर्तव्य बोध साक्षी रहे,
गीता बताती धर्म हित, कृष्ण तत्परता विख्यात है।

— डॉ अ. कीर्तिवर्द्धन

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