वसुंधरा
हरी-भरी मनहर हो वसुंधरा,
सजी पुष्प क्यारियां रंगीली,
महके, चहके पंछीगण सारे,
चेतन हो सृष्टि खिली-खिली।।
नीलाभ अंबर की छाया,
लहराती पवन मस्त हो डोले,
सुन रिम-झिम बूँदों का संगीत,
हौले से कलियां पट खोले।।
रवि किरणें झिलमिल आये,
प्रकृति प्रिय मंद मंद मुस्कुराये,
ओस माणिक मोती सी दमके,
मधुकर मधुर गीत गुनगुनाये।।
आओ, हम पर्यावरण मित्र बने,
सब मिल धरती का शृंगार करे,
पेड़ लगाये, प्रदूषण मिटाये,
शीतल छाँव का वरदान पाये।।