कविता

समर्पण की सादगी

500 की शर्ट में, संजीदा मुस्कान,
5000 की साड़ी से बुनता सम्मान।
हाथों में उसके, बिन शब्दों की बातें,
हर तह में छुपा, प्रेम का अटूट मान।

सादगी की छांव में, अपनेपन का गीत,
झुकता है जो घुटनों पर, वो नहीं कभी कमज़ोर,
चाहत की हर सलवट, वो सहेजता है चुपचाप,
सचमुच, वो प्रेम का सबसे सजीव शोर।

तुम्हारे आँचल के मोड़ में, उसकी दुनिया बसती,
तुम्हारी मुस्कान में, उसका पूरा जहान हंसता।
कभी देखा है, आँखों की उस नमी को,
जो तुमसे पहले, तुम्हारे हर दर्द को समझता?

रिश्ते वो नहीं जो सिर्फ धन से तौले जाएं,
ये तो वो इश्क़ है, जो हर आहट पे हाथ थाम ले।
500 हो या 5000, कीमत नहीं इज़्ज़त की है,
जो तुम्हारे सम्मान में हर कदम साथ चले।

— प्रियंका सौरभ

*प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) facebook - https://www.facebook.com/PriyankaSaurabh20/ twitter- https://twitter.com/pari_saurabh