आंसुओं का गीत
जब हर दर्द से टकराकर,
मन की दीवारें दरकने लगें,
और उम्मीदों की चादर,
चुपचाप सरकने लगे।
जब हँसी की परतें,
ग़म के नीचे दब जाएं,
और खामोशी की गहराई में,
राहें तकती परछाई हो जाएं।
तब वही हाथ,
जो कभी कांपे थे थकान से,
एक-एक बूंद को समेटकर,
नए सपनों की मिट्टी बन जाते हैं।
आंसुओं की नमी से,
मजबूती की जड़ें उगाते हैं,
और फिर उभरते हैं
जैसे तपते सूरज की गर्माहट,
हर ठंडे अहसास को पिघलाती है।
क्योंकि गिरने का साहस,
और खुद को उठाने का हौसला,
सिर्फ उसी के हिस्से आता है,
जिसने खुद अपने हाथों से
अपने आंसू पोंछे हों।
— प्रियंका सौरभ