सामाजिक

कम्प्यूटर 

हम कह सकते हैं कि दिमाग भगवान् का बनाया हुआ ‘कंप्यूटर’ है, और कंप्यूटर इंसान का बनाया हुआ “दिमाग” , दोनों अपनी अपनी जगह काम करते हैं ,मन ‘रिमोट कण्ट्रोल’ का काम करता है,  फिर दोनों में अंतर क्या है….. इंसान के बनाये कंप्यूटर में हम ज़रूरी जानकारी सुरक्षित कर लेते हैं यानि सेव करते हैं, और जो फालतू बाते होती हैं उन्हें हटा देते है, डिलीट कर देते हैं,जिस से मेमोरी ख़ाली रहे, 

इसके ठीक विपरीत हम अपने दिमाग में हर वो बात जो नकारात्मक है वो सहेज लेते हैं और अच्छी बाते भूल जाते हैं… जैसे … उसने  मेरे साथ वो किया , यह किया , ऐसा किया  , वैसा किया …. यह सब बाते दिमाग में भरी रहती हैं और इंसान इसी बारे में सोचता रहता है… और किसी ने अगर आपका कुछ भला किया है तो हम अपना मतलब निकल जाने के बाद उस भलाई को भूल जाते हैं, यानि कंप्यूटर की भाषा में अच्छी बाते डिलीट कर डेरे हैं और बेकार बातें स्टोर कर लेते हैं, अब आप ही सोचिये क्या सही है और क्या गलत, हमरा दिमाग इसीलिए सदा ओवरलोड रहता है, आइये हम भी अपने दिमाग को ठीक उसी तरह इस्तेमाल करें जैसे हम अपने कंप्यूटर को करते हैं,आपकी क्या राय है

— जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

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