दो पल में ही उजड़ गया खिलता चमन
किसको पता था नहीं पहुंचेंगे
चले थे घर से मंजिल की ओर
उड़ने से पहले ही गिर गया
कट गई एकदम जीवन की डोर
कोई बच्चों से मिलने था जा रहा
कोई अपने घर वापिस था आ रहा
एक एक सांस पर है नाम उसी का
कोई अत्यंत पीड़ा से था कराह रहा
झलसे इतने कि पहचान में नहीं आएंगे
दर्दनाक हादसा बड़ा भूल नहीं पाएंगे
दो पल में ही उजड़ गया खिलता चमन
खामोश हो गया बचपन अब नहीं खिलखिलायेंगे
किसने सोचा था मौत ऐसे भी आएगी
किसको छोड़ेगी किसको ले जाएगी
पुकारा तो होगा मरते वक्त सबने प्रभू को
किसे पता था कि उनकी आवाज शोर में दब जाएगी
हादसे की जांच के लिए अब कमीशन बनाया जाएगा
छानबीन होगी पर नतीजा कुछ नहीं आएगा
बुझ गए जिनके घरों के चिराग इस हादसे में
याद उन्हीं को आएगी हमेशा कोई कुछ नहीं कर पायेगा
— रवींद्र कुमार शर्मा