कटे सिर के पहाड़
यह क्या हो रहा है यह कैसा है विकास
पर्यावरण का हो रहा है सत्यानाश
कैसे मिल रही आज्ञा पहाड़ काटने की
सरकारों की मनमानी से आम जन है हताश
पर्यावरणविद बड़ी बड़ी बातें हैं बनाते
डींगे हांक कर सुर्खियों में हैं छा जाते
नज़र क्यों नहीं आता उनको पहाड़ों का छलनी सीना
विनाश देखने वह बरमाणा क्यों नहीं आते
दूर से दिख जाते है अब कटे सिर के पहाड़
लोग भी चुप हैं कहां गई अब उनकी वो दहाड़
दिन रात हो रहा है खनन धरा हो रही लहू लुहान
कोई नहीं सुन रहा मरते पर्यावरण की पुकार
टी वी और दमे के बन रहे बाशिंदे मरीज
नजर नहीं आते जो रहते थे कभी उनके करीब
मिट्टी और राख को मिलाकर कमा रहे अरबों
जेबें अपनी भर रहे कारनामें इनके हैं बहुत अजीब
एक पेड़ काटने की परमिशन हैं लेते
एक काट कर साथ में दस और समेटे
जेब भारी हो तो निकल जाते है रखवाले
चेहरे पर ईमानदारी का लबादा लपेटे
क्यों लोगों के साथ साथ खुद से भी कर रहे छल
भुगतना तो पड़ेगा सभी को आज नहीं तो कल
चन्द सिक्कों के लिए क्यों बेच देते हैं अपना ज़मीर
पर्यावरण को सुधार लो अन्यथा बहुत पीड़ा देगा कल
— रवींद्र कुमार शर्मा